सनातनी
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हिंदू धर्म |
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रिवाज
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सनातनी शब्द के इस्तेमाल भारतीय उपमहादीप में दू प्रमुख अरथ में होखे ला - ओह लोग खाती जे अपना के सनातन धर्म के माने वाला कहे ला, आ कबो-कबो खुद सनातन धर्म खाती भी जे हिंदू धर्म के एगो रूढ़िवादी शाखा भा मत हवे।
एह शब्द के उत्पत्ती के बारे में मानल जाला कि परंपरावादी हिंदू लोग अपना धरम खाती "हिंदू" शब्द के इस्तेमाल से बचे खाती एह शब्द के इस्तेमाल शुरू कइल, काहें से कि "हिंदू" शब्द संस्कृत मूल के ना मानल जाला बलुक बिदेसी शब्द मानल जाला। हिंदू धरम के दू भाग में बिभाजन, मध्य काल के संत लोग द्वारा बिबिध ब्याख्या आ ओकरे बाद के जमाना में भइल हिंदू धर्म सुधार के परिणाम के कारण बनल शाखा भा मत सभ से पुराना जमाना के चलल आ रहल परंपरागत रीति-रिवाज वाला शाखा के अलगा करे खाती भी कइल जाला; एह बिभाजन में परंपरागत मत के सनातनी आ बाद वाला सभ के समाजी शाखा के रूप में देखल जाला। हालाँकि, दक्खिन भारत में शैव, वैष्णव आ शाक्त के बिभाजन प्रमुख रूप से स्वीकार कइल जाला, उत्तर भारत में सनातनी आ समाजी के बिभाजन प्रबल रूप लिहलस जेह में बाकी के ऊपर बतावल बिभाजन सभ के आपस में घालमेल हो गइल। कुछ बिद्वान लोग एकरा के ईसाई धर्म के कैथोलिक आ प्रोटेस्टेंट रुपी बिभाजन से भी तुलना करे ला।
सनातन धर्म
[संपादन करीं]सनातन धर्म के शाब्दिक अरथ होला "हमेसा से चलल आइल धर्म" भा "जेकर आदि-अंत न होखे"। ई शब्द अब अधिकतर हिंदू धर्म खाती इस्तेमाल होला। एह शब्द के प्रस्ताव हिंदू धर्म खाती एह कारण कइल बतावल जाला काहें कि "हिंदू"शब्द भारतीय उत्पत्ती के ना हवे बलुक बिदेसी (फ़ारसी/ईरानी) शब्द हवे।[1] एह शब्दावली के इस्तेमाल हिंदू धर्म सुधार के दौरान भी ब्यापक भइल जेह में परंपरावादी लोग अपना मूल धर्म खाती ई गैर फ़ारसी आ भारतीय नाँव बीछल।[2][3]
वर्तमान इस्तेमाल में सनातन धर्म के इस्तमाल "रूढ़िवादी" भा परंपरावादी ("शाश्वत") के अरथ में कइल जाला जेकर मकसद हिंदू धर्म सुधार के आंदोलन सभ (जइसे आर्य समाज, राधा स्वामी संप्रदाय, रामकृष्ण मिशन वगैरह) के बाद भइल बदलाव से पुराना परंपरा सभ के अलगा करे खाती हवे।[4][5][6]
एह शब्द धर्म सनातन के क्लासिकल संस्कृत साहित्य में भी आइल उद्धरण खोजल गइल बा, जइसे कि मनुस्मृति (4-138)[7] में आ भागवत पुराण में,[8][9] जहाँ एकर इस्तेमाल "ब्रह्मांडी ब्यवस्था" के रूप में भइल बा।
संदर्भ
[संपादन करीं]- ↑ Lester R. Kurtz (2007), Gods in the global village: the world's religions in sociological perspective, Pine Forge Press, 2007, ISBN 9781412927154,
... Hinduism — or Sanatana Dharma, as some believers prefer to call it — is askewed now in religious tradition and the remenants of the Truth of it is what is being talked about here. It now encompass layers of complex deposits from many different cultures over the centuries. Its remarkable diversity and doctrinal tolerance ...
- ↑ The Concise Oxford Dictionary of World Religions. Ed. John Bowker. Oxford University Press, 2000
- ↑ J. Zavos, Defending Hindu Tradition: Sanatana Dharma as a Symbol of Orthodoxy in Colonial India, Religion (Academic Press), Volume 31, Number 2, April 2001, pp. 109-123; see also R. D. Baird, "Swami Bhaktivedanta and the Encounter with Religions", Modern Indian Responses to Religious Pluralism, edited by Harold Coward, State University of New York Press, 1987)
- ↑ Dansk etnografisk forening (1995), Folk, Volumes 36-37, Dansk etnografisk forening, 1995,
... The Arya Samaj and their activities can be understood as representing a cultural revivalist movement ... the orthodox Hindus, the Sanatanis, who supported and protected Sanatan Dharm (eternal religion) ...
- ↑ Anupama Arya (2001), Religion and politics in India: a study of the role of Arya Samaj, K.K. Publications, 2001,
... the Samaj is opposed to idol worship which is practised in the traditional Sanatan Dharma of Hindu ... difference between the Arya Samaj and those movements was that the former was a revivalist and a fundamentalist movement ...
- ↑ Robin Rinehart (1999), One lifetime, many lives: the experience of modern Hindu hagiography, Oxford University Press US, 1999, ISBN 9780788505553,
... the Lahore Sanatana Dharma Sabha [society for the eternal dharma], which was an organization dedicated to preserving what it considered the true Hindu tradition against the onslaught of reform and revival groups ...
- ↑ Manusmriti (4-138),
... "Satyam bruyatpriyam bruyanna bruyatsatyamapriyam. Priyam cha nanrtam bruyadesa dharmah sanatanah." (अनुबाद: "Speak the truth, speak the truth that is pleasant. Do not speak the truth to manipulate. Do not speak falsely to please or flatter someone. This is the quality of the eternal dharma") ...
- ↑ Bhagvata Purana,
... "At the end of each cycle of four yugas, the rishis, through their asceticism, saw the collections of srutis swallowed up by time, after which the eternal dharma (was re-established). (Srimad Bhagavatam 8.14.4)
- ↑ Authority, Anxiety, and Canon By Laurie L. Patton, P. 103.