संसार

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संसार या भवसागर भारतीय बिचार हवे जेवना में ई मानल जाला की जन्म-मरण के चक्र में जीवात्मा अनंत काल ले यात्रा करत रहे ला। कर्म आ ओकर फल भोगे खातिर निरंतर चले वाला ई चक्र संसार हवे। एही संसार, आवागमन, से मुक्ती के मोक्ष या निर्वाण कहल जाला।

इहो देखल जाय[संपादन करीं]

संदर्भ[संपादन करीं]