जैन दर्शन

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जैन दर्शन पुरान भारत के एगो दर्शन हऽ जवन जैन धर्म मे पाइल जाला। जैन दर्शन के एगो सभ से मुख्य बिसेसता एकर द्वैतवादी तत्वज्ञान हऽ, जे इ मानेला जे कवनो चिझ दु परकार से अस्तित्व मे रहेला; पहिला जेकरा मे परान आ संवेदना होखे, ओकरा जीव कहल जाला; आ दोसरका जेकर परान ना होखे, ओकरा अजीव कहल जाला।

जैन पोथी सभ मे ढेर परकार के दार्शनिक बिसय पाइल जाला जइसे; प्रमाणशास्त्र, तत्वज्ञान, नीतिशास्त्र आ ब्रह्माण्डबिद्या। जैन बिचार प्राथमिक रूप से जीव सभ के चरित्तर बुझे प बेसि बर देवेला; केंगा जीव कर्म से बन्हाइल रहेला आ केंगा ओकरा पुनर्जन्म के चक्का से मुक्ति (मोक्ष) मिलेला। जैन लोग इहो मानेला जे ब्रह्माण्ड के कवनो देवता (सृष्टिकर्ता) नइखे बनइले आ इ अनादी हऽ जेकर कवनो सुरुआत नइखे आ एगो चक्र मे चलेला जे मे एकर सृजन आ बिनास होत रहेला।

जैन लोग मानेला जे जैन दर्शन के इतिहास मे तीर्थंकर लोग कए बेरा पढ़वले हऽ। इतिहासकार लोग प्राचीन भारत मे मुख्य रूप से महावीर (5 वा शताब्दी ईसा पूर्व, बुद्ध के समकालीन) आ संभवत: पार्श्वनाथ (8 वा चाहे 7 बा शताब्दी ईसा पूर्व) के बातन मे जैन दर्शन के मूल जोहेला।

पॉल डुंडस के मोताबिक, एतना लाम इतिहास होलो प जैन दर्शन मे बहुते हम बदलाव आइल बा। एकर मुख्य कारन तत्वार्थ सूत्र नांव के ग्रंथ के परभाव हऽ।

ज्ञान[संपादन करीं]

आचार्य पूज्यपाद के सर्वार्थसिद्धि के मोताबिक, जीव के संगे सभ से निमन तबे होला जब उ पुनर्जन्म के चक्का से मुक्त हो जाला। मुक्ति तबो भेंटा जाला जब केहू सभ चिझ जान जाला (सर्वज्ञानी), अइसन मानल जाला के महावीर सर्वज्ञानी रहलें।

तत्त्वार्थ सूत्र के अनुसार, मुक्ति पावे के तीनि गो राह बा (एकरा तीनि गो रत्नन के रूप मे जानल जाला):

सही दर्शन, सही ज्ञान, आ सही आचरन (एक्के संगे) मुक्ति के राह बनावेला।

— तत्त्वार्थ सूत्र (1–1)[1]

सर्वार्थसिद्धि के मोतबिक:

  • सही दर्शन (सम्यक दर्शन) के माने हऽ, "तत्व के सही ज्ञान के जान ले कुछु देखल", सही दर्शन सही ज्ञान से प्राप्त होला।
  • सही ज्ञान (सम्यक ज्ञान) के माने हऽ, "तत्वन जइसे की जीव के जानल"।

जैन लोग मानेला ​​जे जीव सभ चीझन के पूरा ज्ञान पा सकेला (सर्वज्ञता)। जेकरा लगे इ ज्ञान होला ओकरा सिद्ध मानल जाला। इ आत्मा सभ अइसन हऽ, के सभ चीझन से अलग होइ गइल बा, आ एही से सभ चीझन मे सोझे बुझ सकेला काहे से की उनकर आत्मा के ज्ञान अब कूछुवो रोक नाही सकेला। बहुते जीवन ला, उनकर आत्मा के सर्वज्ञता ओकरा से सटल कर्म के कन सभ के चलते ना मिलि पावे, जस बदरी के चलते सूरूज के घाम रुकि जाला। एही से, एइसन जीव सभ बदे सर्वज्ञ ज्ञान के एक्के गो स्रोत होला, जवन की केवली के शिक्षा है। एह से की अब कवनो जींदा किवली नइखन, जैन शास्त्र एह तरे के ज्ञान के एकमात्र स्रोत हऽ आ जैन दर्शन मे सभ से ऊँच मानल जाला। एही चलते, जैन दर्शन शास्त्रन मे लिखल सिद्धांतन के सांच मानल जाला आ दर्शन के काज मुख्य रूप से एह सिद्धांतन के बटोरल आ बखान कइल हऽ।

सत्व शास्त्र[संपादन करीं]

हैरी ओल्डमेडो के मोताबिक, जैन सत्व शास्त्र यथार्थवादी सा द्वैतवादी दून्नो हऽ। जेफरी डी लॉन्ग ओ जैन तत्वमीमांसा के यथार्थवादी मानेलन, जे एक परकार का बहुलवाद हऽ जे अलग अलग वास्तविकता के अस्तित्व के दावा करेला।

जैन दर्शन के मोताबिक, तत्व सात गो होला:

  1. जीव: जे मे जान होला ओकरा जीव कहल जाला, एकरा अतमो कहल जाला, जेकर ओह देह से अलग अस्तित्व होला जेकरा मे उ रहेला। अमर जीव की गुन होला असीमित चेतना, ज्ञान, आनंद आ ऊर्जा। एह से इ डुन्नो एक तरह से अमर बा आ एक तरह से अनस्थिर बा। बिनास आ जनम आत्मा के एक रूप के गायब होखल आ दोसर रूप के उपस्थिति के उल्लेख करेला, इ खाली जीव के संशोधन हऽ।

सन्दर्भ[संपादन करीं]

  1. Jain, Vijay K. (2011), p. 2.