तीज
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हिंदू धर्म |
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रिवाज
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तीज हिन्दू नारी के मनावे वाला बहुत महत्व के पर्व ह। ई पर्व अपना मरद के लम्बा उमिर आ स्वास्थ्य के कामना खाती मनावल जाइल जाला। ई त्यौहार भाद्र शुदी द्वीतिया से पञ्चमी तक 4 दिन मनवाल जाला। तीज में भगवान शिव के पूजा अर्चना कइला के साथ नाचगान मनोरञ्जन समेत करे के चलन बा। हिन्दू मेहरारू द्वारा स्वतन्त्र आ आनन्दमय रूप से मनवाल जाये वाला ई त्यौहार अन्य धर्म आ जातजाति के मेहरारू भी हर्षोल्लास के साथ मनावे लागल बडिस।
ई त्यौहार मुख्य रूपले उत्तरप्रदेश,बिहार,नेपाल आदि में मनावल जाला। कहल जाला की आदि -शक्ति भगवान शिव केअर्धाङ्गीनी हिमालय पुत्री पार्वती जी भगवान शिव के स्वास्थ्य तथा शरीर में कवनो वाधा उत्पन्न न हो एह कामना से पहिले भूखल रही उ दिन शास्त्र में हरितालिका तिज के दिन कहल गइल बा तब से आज तक हर हिन्दू नारी ई त्यौहार मनावत अवतारी ।
सरगही खाए वाला दिन[संपादन करीं]
तीज भूखे वाला दिन से एक दिन पहिले यानि भाद्र शुदी दुतिया के हर कोई अपना बेटी बहिन के घरे बोलावेला या ससुरार से नईहर आवे में कवनो समस्या के स्थिति में नईहर से मर-मिढ़ाई ल, लुगा-झूला, लइकन के खेलवाना आदि भेजवा दिहल जाला एकरा के तीज भेजल या आयिल कहल जाला। जेकरा के देख सेकरे घरे ससुरारी आ ममहर के लोग लउकेला। पूरा गांव में खुसी के माहौल बन जाला। एह त्यौहार में मुख्य रूप से पौरकिया ठेकुआ टिकरी बेलगरामी जईसन मिठाई जेकरा घरे पहुंच ओहिजे मिलेला। रात में देरी तक मेहरारू खालिस 4 बजे भोर तक दही आदि के सरबत पिअल जाला एकरा के सरगही खाए वाला दिन कहल जाला।
त्यौहार मनावे के तरीका[संपादन करीं]
तीज के दिन छोड़ के गणेशचतुर्थी आ ऋषिपञ्चमी के भी एक साथ मनावे के चलन बा। आज के दिन मेहरारू लोग भोरे उठ के नहा-धोवा के नया कपडा पहिर के भगवान भोले नाथ के पूजा करेला लोग दिन भर निराजल भूख के साझी खानी टोल गांव के बेटी-पतोह संगे जुट के गीत मंगल आदि गावे ला लोग। भोले नाथ के मंदिर में दिआ जरावे के साथ साथ सुंदर -सुन्दर भजन से पूरा गांव गूँज जाला आज के माहौल आ सदभावना देखि के मन करेला की ई दिन सालो भर रहित। तीज के दिन मेहरारू लोग के मुरझाईल चेहरा देख के नारी के महानता के बोध होला की कैसे अपना शरीर के कष्ट देके ई लोग अपना परिवार के खुसी के कामना करेला लोग। शायद एहि से शास्त्र में नारी के महानता बतावल गइल बा।
धार्मिक पृष्ठ भूमि[संपादन करीं]
हिन्दू के धर्म ग्रन्थ शिव पुरान के कथा अनुसार जब देवी पार्बती के पिता महाराज हिमालय अपना पुत्री पार्वती के बिबाह भगवान बिष्णु से जब करे के तैयार भइले तब यी बात पार्वती के न जँचल | उ शिव के अपना पति के रूप में प्राप्त करे खाती जंगल में जा के तपस्या करे लगली। जब पार्वती के तपस्या 100 बरस पूरा हो गइल तब भी भोले नाथ दर्शन ना दिहनि तब पार्वती शिव लिंग के स्थापना कर के निराहार ब्रत- उपास से शिव के आराधना कइली तब शिव, पार्वती के कठोर तप देख के मनचाहा बरदान देवे के राजी हो गइले। तब पार्वती शिव के अपना पति के रूप में मंगलि आ कहली की हे नाथ आज हरितालिका के दिन जे भी मेहरारू राउर जवना भी कामना से पूजा करसु उनको पूरा करब। एह प्रकार से शिव पार्वती के बिआह भइल। आ हिन्दू धर्म में तीज के त्यौहार शुरू भइल।
बाहरी कड़ी[संपादन करीं]
- व्रत कथा वेब दुनिया पर (हिंदी में)।
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