बौद्ध धर्म के इतिहास

विकिपीडिया से
बौद्ध धर्म के बिस्तार, गहिरा नारंगी रंग में जन्म-स्थान (भारत आ नेपाल के तराई) के इलाका से छठवीं सदी ईपू में बिस्तार शुरू भइल; हलका पीला इलाका में बौद्ध धर्म अल्पसंख्यक बा आ गहिरा पीयर रंग वाला इलाका में मेजारिटी में बा। महायान (लाल तीर), थेरवाद (हरियर तीर) आ तांत्रिक-वज्रयान (नीला तीर)।

बौद्ध धर्म के इतिहास के सुरुआत गौतम बुद्ध के छठवीं सदी ईसा पूर्व में लुंबिनी, नेपाल में जनम के समय से ले के वर्त्तमान समय ले बिस्तार लिहले बाटे। एही से ई धरम संसार के कुछ सभसे पुरान धर्म में गिनल जा सकत बाटे। उत्तरी भारत आ नेपाल के सीमा वाला इलाका एह धर्म के जन्मभूमि बाटे जहाँ से ई धर्म समय के साथ एशिया महादीप के एगो बड़हन क्षेत्र पर बिस्तार लिहलस। एह बिस्तार के दौरान बौद्ध धर्म में कई बदलाव आ बिभाजन जैसे कि थेरवाद, हीनयानमहायान शाखा के निर्माण वगैरह भी भइल।

गौतम बुद्ध[संपादन करीं]

बुद्ध शब्द के अर्थ होला जेकरा के बोधि, अर्थात सत्य के ज्ञान मिल चुकल होखे, जे जाग चुकल होखे। वर्तमान भारत आ नेपाल के तराई वाला इलाका में शाक्य कुल में लुम्बिनी, जेवन शाक्य गणतंत्र क राजधानी रहे (वर्तमान में नेपाल में), नामक अस्थान पर राजा शुद्धोदन के बेटा के रूप में राजकुमार सिद्धार्थ के जन्म भइल। जज्ञान प्राप्त कइले के बाद उनके गौतम बुद्ध के नाँव से जानल गइल (गौतम गोत्र के नाँव रहल)। उहाँ की जन्म आ मरला क कौनो निश्चित समय आ तारीख़ नइखे मालूम ज्यादातर बिद्वान लोग गौतम बुद्ध के जीवनकाल 563 ईपू से 483 ईपू की बीच में मानेला।[1][2]

सुरुआती बौद्ध धर्म[संपादन करीं]

सुरुआती बौद्ध धर्म के समय गौतम बुद्ध के समय से ले के दूसरी बौद्ध संगीति ले के मानल जाला।

पहिली बौद्ध संगीति

पाँचवीं सदी ईसा पूर्व में, महात्मा बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद पहिली बौद्ध संगीति, राजगृह में अजातशत्रु के समय में, बुद्ध के प्रमुख शिष्य महकस्सप के अध्यक्षता में भइल। एह संगीति (सम्मलेन या परिषद) में बुद्ध के उपदेश सभ के संकलन कइल गइल जवना के तिपिटक कहल जाला आ जवन शुरुआती बौद्ध धर्म बारे में जानकारी देला।

दूसरी बौद्ध संगीति

चउथी सदी ईसा पूर्व में, संघ में शामिल लोग के कुछ अनुशासन में ढिलाई के कारण उपजल बिबाद के सलटावे खातिर दूसरी बौद्ध संगीति बोलावल गइल। ई वैशाली में भइल रहे।

अशोक के काल में[संपादन करीं]

सम्राट अशोक के समय में मौर्य साम्राज्य
अशोक के समय में बौद्ध धर्म के बिस्तार।

सम्राट अशोक (273 ईपू - 232 ईपू) कलिंग युद्ध के बाद बौद्ध धर्म अपना लिहलें। उनुके समय में राज संरक्षण में बौद्ध धर्म के तेजी से आ ब्यापक परचार-प्रसार भइल। अशोक, साँची स्तूप बनववलें आ जगह-जगह अशोक स्तंभ लगवा के नैतिक शिक्षा के प्रसार कइलें। अशोके के समय में, लगभग 250 ईपू में तीसरी बौद्ध संगीति पाटलिपुत्र (वर्तमान पटना के पास) में भइल। एह सम्मलेन के बाद बौद्ध धर्म के ब्यापक परचार करे खातिर भिक्षु लोग के दूर दूर ले भेजल गइल। अशोक के लड़िका महिंद आ लइकी संघमित्रा खुद श्रीलंका में बौद्ध धर्म के प्रचार करे गइल लोग। संघमित्रा, उहाँ अपने साथ बोधि बृक्ष के कलम ले गइली जवना के अनुराधापुर में रोपल गइल।

शुंग काल में[संपादन करीं]

शुंग वंश (185-73 ईपू) के समय में बौद्ध धर्म पर संकट आ गइल आ बौद्ध ग्रंथन में मिले वाला बिबरण के आधार पर कहल जाला कि एह समय में सैकडन बौद्ध बिहार सभ के मटियामेट कइ दिहल गइल आ हजारन हजार बौद्ध भिक्षु लोग के हत्या करि दिहल गइल। बौद्ध ग्रंथन में इहो दावा कइल जाला की एह काल में बहुत सारा बौद्ध बिहार सभ के ऊपर हिंदू मंदिर बनवा दिहल गइल। हालाँकि, आदुनिक इतिहासकार लोग सबूत के आभाव में पुष्यमित्र शुंग के अइसन आरोप से बरी कर देला।[3][4]

एही काल में बौद्ध लोग उत्तर आ दक्खिन दुनों ओर बिस्थापित भइल आ बौद्ध धर्म के कला केन्द्र मगध से हट के मथुरागांधार हो गइल आ दक्किन में अमरावतीभरहुत बौद्ध कला के केंद्र बनलें।[5]

महायान के उपज (1ली सदी ईसा पूर्व से 2सरी सदी ईसवी)[संपादन करीं]

कुछ बिद्वान लोग के अनुसार महायान के आरंभिक पुस्तक प्रज्ञापारमिता सूत्र के रचना आंध्र देश में कृष्णा नदी के आसपास के महासांघिक लोग कइल। ई पहिली सदी ईसापूर्व के समय के दौरान भइल।

चउथी बौद्ध संगीति

कनिष्क के समय में (100 ई॰) काश्मीर में थेरवाद शाखा के लोग बौद्ध संगीति बोलावल। ई श्रीलंका में भइल बौद्ध संगीति से करीब 200 साल पहिले भइल रहे। श्रीलंका वाली बौद्ध संगीति में सभसे पहिली बेर तीनों पिटक के लिखित रूप में संकालित कइल गइल रहे। एही से पाली धर्मग्रंथ के पहिला रूप अस्तित्व में आइल।

एह प्रकार से दू गो चउथी बौद्ध संगीति भइल, एगो काश्मीर में - थेरवाद के आ दूसरी श्रीलंका में सर्वास्तिवाद के माने वाला लोग के।

महायान के बिस्तार (1ली सदी से 10वीं सदी ईसवी)[संपादन करीं]

पहिली सदी ईसवी में ब्यापार के मार्ग आ बौद्ध धर्म के बिस्तार।

पहिली सदी से ले के 10वीं सदी के बीच बौद्ध धर्म के महायान शाखा के फइलाव भइल आ ई मध्य एशिया, चीन आ पूर्ब एशिया ले चहुँपल आ दक्खिन पूर्ब एशिया के अधिकतर देससभ में चहुँप गइल।

वज्रयान के उद्भव (5वीं सदी)[संपादन करीं]

पांचवी सदी के दौरान बौद्ध धर्म में शैव मत के मिलावट होखे से आ वाममार्गी तन्त्र के आचरण के प्रवेश के बाद बौद्ध धर्म के एगो नयी शाखा के उत्पत्ती भइल जवना के वज्रयान नाँव हवे।

थेरवाद के पुनर्जागरण (11वीं सदी)[संपादन करीं]

मानल जाला की भारत में राजनीतिक उथल-पुथल से जमीनी रास्ता के कम चालू रह गइला के कारण समुन्द्री मार्ग से यातायात बढ़ल आ एही से लंका के पाली धर्मग्रंथ, जवन थेरवाद के आधार हवें, अधिक प्रचलन बढ़ल।


वर्त्तमान बौद्ध धर्म[संपादन करीं]

वर्तमान समय में बौद्ध धर्म अपने जन्म-भूमि में एगो कम प्रचलित धर्म बाटे। हालाँकि, पूर्ब आ दक्खिन पूर्ब एशिया के देसवना में ई प्रमुख धर्म बा। तिब्बत पर चीन के शासन के अस्थापना के बाद तिब्बत के काफ़ी बौद्ध लोग पुरा दुनिया में फैल गइल बाटे।

इहो देखल जाय[संपादन करीं]

संदर्भ[संपादन करीं]

  1. Cousins, L. S. (1996). "The dating of the historical Buddha: a review article", Journal of the Royal Asiatic Society (3)6(1): 57–63.
  2. Prebish, Charles S. (2008). Cooking the Buddhist Books: The Implications of the New Dating of the Buddha for the History of Early Indian Buddhism, Journal of Buddhist Ethics 15, p. 2
  3. "Elst, Koneraad Ashoka and Pushyamitra, iconoclasts?". Archived from the original on 2017-04-01. Retrieved 2016-05-13.
  4. Aśoka and the Decline of the Mauryas by Romila Thapar, Oxford University Press, 1960 P200
  5. "Gandhara", Francine Tissot, p128: "The monks, expelled from the Ganges valley, maybe by sectarian disputes, followed the northern road (Uttarapatha) or the northern road (Daksinapatha), which conducted them to the Northwest for some, and to the Occidental ocean for the others, with multiple artistic creations marking their respective roads"