बौद्ध संगीति

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अशोकमोग्गलिपुत्ततिस्स, तीसरी बौद्ध संगीति, जेतवन, पाटलिपुत्र

बौद्ध संगीति बौद्ध धर्म के अनुयायी बिद्वान लोग के एक प्रकार के सम्मेल्लन के कहल जाला। प्राचीन काल में अइसन कुल चारि गो संगीति भइल जिनहन के मकसद भगवान बुद्ध के शिक्षा के सही आ स्पष्ट रूप से पालन करे खातिर एह शिक्षा सभ के पाठ, संकलन आ ओह पर चर्चा कइल रहे।

पहिली बौद्ध संगीति बुद्ध के मरले के कुछ दिन बाद भइल रहे जवना में बुद्ध के शिक्षा सभ के स्पष्ट रूप से समझे आ अनुसरण करे खातिर उनके शिक्षा सभ के पाठ आ संकलन भइल जवन विनयपिटकसुत्तपिटक के प्राचीनतम अंश बा। दुसरी बौद्ध संगीति पहिली के करीब सौ बरिस बाद वैशाली में भइल आ एहमें विनय आ सुत्त पिटक के बिस्तार आ अभिधम्मपिटक के कुछ अंश के संकलन भइल। एह संगीति में अनुयायी लोग दू भाग में बँट गइल जवन बाद में हीनयानमहायान कहाइल। तिसरी संगीति अशोक के काल में पाटलिपुत्र में भइल जवना में थेरवादी लोग के द्वारा विनयपिटक, सुत्तपिटक आ अभिधम्मपिटक के रूप में पाली तिपिटक के संकलन भइल।[1]

सुरुआती चार गो संगीति के बाद ई परंपर टूट गइल आ बहुत बाद में जा के आधुनिक काल में पाँचवी संगीति हो पावल। बौद्ध संगीति के कुल संख्या के बारे में बहुत एकमत नइखे आ इहाँ पच्छिमी लेखन के हिसाब से इन्हन के बर्णन कइल गइल बाटे।

फुटनोट[संपादन करीं]

  1. शर्मा & चन्द्रधर 1998, p. 46.

संदर्भ[संपादन करीं]

  • शर्मा, चन्द्रधर (1998). भारतीय दर्शन:आलोचन और अनुशीलन (हिंदी में). बनारस: मोतीलाल बनारसीदास. ISBN 8120821343. Retrieved 13 मई 2016. {{cite book}}: Invalid |ref=harv (help)
  • शास्त्री, के॰ ए॰ नीलकांत (1 जनवरी 2007). नंद-मौर्य युगीन भारत (हिंदी में). बनारस: मोतीलाल बनारसीदास. ISBN 8120821041. Retrieved 13 मई 2016. {{cite book}}: Invalid |ref=harv (help)
  • सहाय, शिवस्वरूप (2008). प्राचीन भारतीय धर्म एवं दर्शन (गूगल पुस्तक) (हिंदी में). बनारस: मोतीलाल बनारसीदास. ISBN 8120823680. Retrieved 13 मई 2016. {{cite book}}: Invalid |ref=harv (help)