मगध
मगध महाजनपद | |
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1100-345 ई.पू | |
मगध आ आउरो महाजनपद दूसिरका नगरीकरण काल में, प्रारम्भिक ऐतिहासिक काल। | |
मौर्य साम्राज्य के क्षेत्रीय विस्तार छाट्ठा सदी ईसा पूर्व से | |
राजधानी | राजगृह (गीरीव्रज) बादमें, पाटलिपुत्र (आधुनिक पटना) |
आम भाषा | संस्कृतम्[1] मागधी प्राकृत अर्धमागधी प्राकृत |
धरम | हिन्दू बुद्ध जैन |
सरकार | राजवंश जे तरह अर्थशास्त्र में बतावल गइल बा। |
सम्राट | |
• 544–492 ईपू | बिम्बिसार |
• 492–460 ई.पू | अजातशत्रु |
• 460–444 ई.पू | उदायीन |
• 437–413 ई.पू | नागदासक |
• 413–395 ई.पू | शिशुनाग |
• 395–367 ई.पू | कालाशोका |
• 349–345 ई.पू | महानन्दीन |
इतिहासी जुग | लोह युग |
करेंसी | पनस |
मगध पुराण भारत में सिंधु-गंगा के परति में बसल सोलः गो बरीयार महाजनपदन में से एगो जनपद आ दुसिरका नगरीकरण (600-200 ई.पू) के महान साम्राज्य रहलक। जेकर राजधानी राजगृह रहे बादमें पाटलिपुत्र में स्थानफेर करल गइल। ई बिहार के सुवर्णयूग के शक्तिशाली साम्राज्यन में से एगो साम्राज्य रहे। मगध पर बृहद्रथ राजवंश, प्रद्योत राजवंश (682-544 ई.पू), हर्यङ्का राजवंश (544-413 ईसा पूर्व), शिशुनाग राजवंश (413-345 ईसा पूर्व) आ एकरे अन्तले मौर्य राजवंश के शासन रहल। गाँवन के आपन खूदके सभा रहे जवऽन एगो प्रमुख द्वारा समहारल जाता रहे। ईनके ग्रामक कहल जाये। इनहन के प्रशासन कार्यकारी, न्यायिक आ सैन्य कामकाज में बाँटल रहल।
रामायण, महाभारतम् आ पुराणन में मगध के संदर्भ भेटाला। बौद्ध आ जैन ग्रंथ सभ में मगध के संदर्भ में भेटाला। अथर्ववेद में अंग राज्य, गांधार आ मुजावत के साथे मगधो के उल्लेख बाटे। बौद्ध आ जैन धम्म के उत्पत्ति मगध से भइल। गुप्त साम्राज्य, मौर्य साम्राज्य आ अउरी केतनहे साम्राज्यन के उत्पत्ति मगध से भइल। पुराण भारत के विभिन्न शास्त्र, गणित, ज्योतिष शास्त्र, धर्मशास्त्र आ दर्शनशास्त्र में मगध के योगदान अपार बा।
मगध के सीमा विस्तार
[संपादन करीं]-
500 ईसापूर्व, शक्तिशाली गणसंघ अउर मगध जनपद
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मगध साम्राज्य के विस्तार अजातशत्रु के साथे शुरू भईल
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नंद साम्राज्य आपन चरम पे
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चंद्रगुप्त के साम्राज्य नंद साम्राज्य के कब्जा करेला के बाद, सौराष्ट्र में सुदर्शन झील बनायिके अउर सेल्युकस से चार प्रांत (गेडरोशिया , अराकोसिया, आरिया (हेरात), अउर परोपमिसादई) का जीते के बाद
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बिन्दुसार के साम्राज्य दक्षिण विजय के बाद
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अशोक साम्राज्य कलिंग विजय के बाद
इतिहास
[संपादन करीं]तनिका बिद्वानन के ओरसे कीकटा जनजाति के — जेकर उल्लेख ऋग्वेद (3.53.14) में उनके शासक प्रमागन्दा के सङे भेटाला — के मगध के पूरखा के रूप में चिन्हवले बाड़े। काहेसे के बादके ग्रन्थन में किकटा के मगध के समानार्थी के रूप में उपयोग करल गइल बा। अथर्ववेद में मगध लोगीन नियर, ऋग्वेद में किकटा लोगीन के एगो शत्रुतापूर्ण जनजाति के रूप में बतावल गइल बा, जे ब्राह्मिक भारत के सीमा पर रहत रहले, जे लोग वैदिक संस्कार ना करत रहलें।
मगध लोगीन के सभसे सुरुआती वर्णन अथर्ववेद में भेटाला, जहाँवा इनहन के अंग, गांधारी आ मुजावत लोगीन के सङे सुचिबद्ध करल गइल बा। साम्राज्य के मुख्य भाग गङ्ङा के दक्खिने बिहार प्रदेश रहे। एकर मिर राजधानी राजागृह (आधुनिक समय के राजगीर), फेन पाटलिपुत्र (आधुनिक पटना) रहल। राजागृह के शुरू में ‘गिरिवृज्ज’ के नाम से जानल जात रहे आ बाद में अजातशत्रु के शासन काल में एह नांव से जानल जाए लागल। मगध के बिस्तारनीति से बज्जिका लोगीन आ अंग पर बिजय के साथे बिहार आ बङाल के ढेरका प्रदेश के मिलालेवल गइल। मगध राज्य अंत में बिहार, झारखंड, उड़ीशा, पच्छिम बंगाल, पूरबी उत्तर प्रदेश आ ऊहो प्रदेश के आपना में समेट लिहलस जे आज बांग्लादेश आ नेपाल राष्ट्र बा।
पुराण मगध राज्य के जैन आ बौद्ध ग्रंथन में बहुत उल्लेख बा। रामायणम्, महाभारतम् आ पुराणो में एकर उल्लेख भेटाला।
मगध के प्रारम्भिक शासकन के बारे में बहुत कम निश्चित माहिती उपलब्ध बा। एकर सभसे महत्वपूर्ण स्रोत बौद्ध पाली त्रिपिटक, जैनागम् आ हिन्दू पुराण बाड़ें। एह स्रोतन के आधार पर अइसन बुझाता कि मगध पर हर्याङ्का राजवंश के शासन लगभग 200 साल ले रहल, (543 से 413 ईसा पूर्व के बीच)।
बौद्ध धर्म के स्थापक गौतम बुद्ध आपन जिनगी के बहुते समय मगध राज्य में बितवले। ऊ बोधगया में आत्मज्ञान अरजले, सारनाथ में पहिला प्रवचन दिहलें आ राजगृह में पहिला बौद्ध परिषद के आयोजन भइल।
हिन्दू महाभारत में बृहद्रथ के मगध के पहिलका शासक कहल गइल बा। बृहद्रथ वंश के अन्तिम् महाराजा रिपुञ्जय के उनकर मंत्री पुलिका मार दिहलें, जे आपन बेटा प्रद्योत के नया महाराजा के रूप में स्थापित कइलें। प्रद्योत वंश के बाद बिम्बिसार द्वारा स्थापित हर्यङ्का वंश के बारी आइल। बिम्बिसारा एगो सक्रिय आ बिस्तारनीति के पालन कइलक आ अब के पश्चिम बङाल आ अंग राज्य के जीत लिहलें। सिंहासन के लालच में राजा बिम्बिसार के हत्या उनकरे बेटा अजातशत्रु कदेलक।
महाराजा अजातशत्रु आ लिच्छवीयन, जे गङ्ङा नद्दी के उत्तरे बसल एगो बरियार जनजाति रहे। ई दुनो के बिचमे भइल लड़ाई के कारण के बारे में विवरण में तनिका अंतर बा। लागत बा के अजातशत्रु एह बिस्तार में एगो मंत्री भेजले रहले जे तीन साल ले लिच्छवीयन के एकता के अबर करे के काम कइलक। गङ्ङा नद्दी के ओहपार आपन घात शुरू करे खातिर अजातशत्रु पाटलिपुत्र नगरे किला बनवले। मतभेद से फाटल लिच्छवी लोग अजातशत्रु से लड़ले। अजातशत्रु के लिच्छवीयन के हरावे में पन्द्रह साल लागल। जैन ग्रंथनमें बतावल गइल बा के कइसे अजातशत्रु दूगो नया हथियार के उपयोग कइलें: पत्थर के बड़का गोला फेकेवाला गुरदेल, आ झूलत गद्दावाला रथ जेकर तुलना आधुनिक टैंक से कइल गइल बा। पाटलिपुत्र वाणिज्य के केंद्र के रूप में बढ़े लागल आ अजातशत्रु के मरण के बाद मगध के राजधानी बनल।
हर्यङ्का वंश के शिशुनाग वंश उखाड़ फेकवक। अन्तिम् शिशुनाग शासक महानन्दीन के हत्या महापद्मानन्द द्वारा 345 ईसा पूर्व में कइल गइल, तथाकथित "नव नन्द" में से पहिला माने महापद्मानन्द आ उनकर आठगो बेटा, अन्तिम् महाराजा धनानन्द रहलक।
326 ईसा पूर्व सिकंदर के सेना मगध के पच्छिमी सीमा के लगे चहुपल। गङ्ङा पर एगो अउरी बिसाल भारतीय सेना के सामना करे के संभावना से थक गइल आ डेरा गइल सेना हाइफासिस (आधुनिक ब्यास नदी) पर विद्रोह कइलस आ अउरी पूरब ओर जाए से इनकार क दिहलस। सिकंदर अपना अफसर कोएनस से मुलाकात के बाद मना लिहल गइल कि वापस लवटल बेहतर बा आ ऊ दक्खिन मुड़ गइलन आ सिंधु से नीचे के समुंद्र में जाए के रास्ता जीत लिहलन.
अन्दाजीत 321 ईसा पूर्व में नन्द वंश के अंत चंद्रगुप्त मौर्य के हाथ से धनानन्द के हार के साङे भइल जे अपना गुरु चाणक्य के सहायसे मौर्य साम्राज्य के पहिला राजा बनऽल। बाद में महान महाराजा अशोक के शासनकाल में ई साम्राज्य लगभग सौसे भारत पसर गइल ।जे पहिले निर्दयी अशोक ' के नाँव से चिन्हात रहे, बौद्ध धर्म के शिष्य बनला के बाद 'धर्म अशोक' के नाँव से चिन्हाय लागल। बाद में मौर्य साम्राज्य के अंत भइल आ शुंगा आ खरबेडा साम्राज्यो के अंत भइल आ एकरा जगहा गुप्त साम्राज्य के स्थापना भइल। गुप्त साम्राज्य के राजधानी मगध में पाटलिपुत्र रहे।
11वा से 13वा सदी ईसवी से मगध में पाला-काल में एगो स्थानीय बौद्ध राजवंश जेकरा के बोध गया के पिठीपति के नाँव से जानल जाला, पाल साम्राज्य के सहायक नदी के रूप में शासन कइलस।[
संहिले
[संपादन करीं]- ↑ Jain, Dhanesh (2007). "Sociolinguistics of the Indo-Aryan languages". In George Cardona; Dhanesh Jain (eds.). The Indo-Aryan Languages. Routledge. pp. 47–66, 51. ISBN 978-1-135-79711-9.
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