छठ

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छठ पूजा
सुरुज भगवान के सबेरे के पूजा आ अरघ दिहल
अन्य नाँवछठी
छठ पर्व
डाला छठ
मनावे वालाहिन्दू आ जैन
महत्त्वसुरुज के पूजा, लमहर उमिर, संतान आ सुख संपत्ति के खाती
Observancesनहान, बरत (भुक्खल), पूजा, अरघा दिहल आ परसाद चढ़ावल।
सुरूकातिक के छठ से दू दिन पहिले
अंतछठ के अगिला दिने
समयकातिक सुदी छठ
केतना बेरचैती छठ के लेके साल में दू बेर

छठ पूजा भा छठ परब भोजपुरी, मिथिला, मगध आ मधेस इलाका के प्रमुख परब हवे। ई सुरुज के पूजा के तिहुआर ह आ मुख्य रूप से हिंदू औरत लोग मनावे ला। मुख्य तिथी कातिक महीना के अँजोर के छठईं तिथी हवे, एकरे दू दिन पहिले से ले के अगिला दिन ले ई तिहुआर मनावल जाला। कातिक के छठ मुख्य हवे जेकरा के डाला छठ भी कहल जाला। एकरे अलावे, चइत के महीना में भी छठ मनावल जाले जेकरा के चइती छठ कहल जाला।

नाहन, बरत आ अरघा दिहल एह पूजा के मुख्य कार्यक्रम होला। जघह के हिसाब से, पानी के कवनों अस्थान, नद्दी-पोखरा के घाट पर मुख्य पूजा आ अरघा संपन्न होला। बिसेस परसाद के रूप में कई किसिम के फल आ खास तरीका से बनावल पकवान ठेकुआ होला जेकरा के माटी के चूल्हा पर पकावल जाला। नया सूप आ डाली में बिबिध किसिम के फल रख के घाट पर ले जाइल जाला। ओहिजा, ई सब सामग्री माटी के बेदी पर सजावल जाले, दिया अगरबत्ती बारल जाला आ कर्हियाइ भर पानी में ऊखि गाड़ल जाला जेह पर साड़ी चढ़ावल जाले। मेहरारू लोग पानी में खड़ा हो के डूबत सुरुज के पहिला अर्घा आ अगिला दिने फिर दोबारा ओही जे जा के उगत सुरुज के अरघा देला लो।

भारत के बिहार, झारखंड, पूर्वांचल आ नेपाल के मधेस इलाका में, आ जहाँ-जहाँ एह क्षेत्र के लोग पहुँचल बा, धूमधाम से मनावल जाला। बिहार, झारखंड आ पूरबी उतर प्रदेश अउरी नेपाल के मधेस एह परब के मुख्य इलाका हवे। एह क्षेत्र में ई तिहुआर बहुत धूमधाम से मनावल जाला आ नदी किनारे घाट सभ पर एकरे खाती बिसेस तइयारी होले। एह मुख्य इलाका के अलावा, बंगाल, आसाम, दिल्ली, मुंबई, बंगलौर आ बाकी पूरा भारत में जहाँ-जहाँ एक क्षेत्र के लोग निवास करत बा, परंपरागत रूप से ई परब मनावे ला। भारत आ नेपाल के अलावा अउरी कई देसन में एह तिहुआर के मनावल जाला।

नाँव[संपादन करीं]

सूर्य देव, जिनके एह परब में पूजा कइल जाला

छठ भा छठि (संस्कृत: षष्ठी) के शाब्दिक अरथ हवे महीना के छठईं तिथी। ई तिथि हिंदू धर्म में सुरुज भगवान के पूजा खाती बिसेस महत्व के मानल जाले। एही तिथी के ई परब मनावल जाए के कारन[2] एकर नावें छठ परब भा छठ पूजा हो गइल बा। हालाँकि, छठ सुरुज भगवान के पूजा के तिहुआर हवे, छठि शब्द, जवन तिथी खाती इस्तेमाल होला, स्त्रीलिंग होखे के कारन, पूजा के छठ माई के पूजा के रूप में भी कल्पित कइल जाला। कातिक के अँजोर के छठईं तिथी के मनावल जाए वाला एह परब के डाला छठ भी कहल जाला। डाला भा डाल, बाँस के बनावल बड़हन आकार के दउरा के कहल जाला जबकि छोट रूप के डाली भा डलिया कहल जाला। नया डाला, जवना के एह पूजा में बिसेस महत्त्व होला, में पूजा के सामग्री आ फल-नरियर-परसाद वगैरह चीज घाट पर रख के चढ़ावे के परंपरा के डाला चढ़ावल भी कहल जाला आ एह चढ़ावा के एह तिहुआर में बिसेस अस्थान होखे के तिहुआर के डाला छठ कहल जाला।[3]

समय[संपादन करीं]

चंद्रमा आधारित हिंदू पतरा में छठ तिथी हर महीना के अन्हार-अँजोर दुनों पाख में पड़े ले। एह तिथी के सुरुज देवता के पूजा खाती बिसेस महत्व के मानल जाला। हप्ता के दिन सभ में अतवार के, आ सताइस गो नक्षत्र सभ में अदरा नक्षत्र के सुरुज भगवान के पूजा के बिसेस महत्व हवे, ओही तरीका से तिथी सभ में छठईं तिथी के सुरुज के पूजा खाती निश्चित कइल गइल बा आ हर महीना के छठई तिथि के सूर्य षष्ठी के नाँव से भी जानल जाला। एह हर महिन्ना परे वाला छठ सभ में भी दू गो, चइत आ कातिक महीना के अँजोर पाख के छठ, के खास महत्व दिहल जाला। चइत वाली छठ के चइती छठ कहल जाला जबकि सभसे धूमधाम से आ ब्यापक रूप से मनावल जाए वाला परब कातिक महीना वाला हवे।

मान्यता[संपादन करीं]

छठ के पूजा कब सुरू भइल आ काहें सुरू भइल एकरे बारे में कई गो कथा आ मान्यता चलन में बाड़ी सऽ। कथा सभ बतावल जालीं कि, सुकन्या नाँव के औरत सूर्य के पूजा कइले रहली जेकरे बाद से ई बरत छठ के रूप में मनावल जाए लागल। कृष्ण के बेटा साम्ब के शापित हो के कोढ़ के रोगी हो जाए के बाद सुरुज देवता के पूजा करे के उल्लेख भी मिले ला। महाभारत के हवाला दे के द्रौपदी के छठ ब्रत रहे के बात कहल जाले आ कुछ जगह कर्ण द्वारा एह पूजा के सुरू करे के बात कहल जाला। रामकथा में सीता द्वारा राम के राज्याभिषेक के बाद भइल दीपावली के बाद छठ के सुरुज भगवान के आराधना करे के बात बतावल जाला।[4]

एगो अन्य कथा मिले ले जेह में एह बरत के देवी छठी मइया के पूजा के बिबरन मिले ला। एह कथा में बतावल गइल बा कि प्रियव्रत मनु, पहिला मनु रहलें जे महर्षि कश्यप के सलाह अनुसार पुत्रेष्टि जग्य कइलेन। एह जगि के बाद उनके पुत्र भइल बाकी मुर्दा पैदा भइल। शोक में बूड़ल प्रियव्रत आ मालिनी के सोझा एगो देवी प्रगट भइली आ उनके छुअले से संतान जिंदा भ गइल। उहे देवी, अपना के ब्रम्हा के मानस पुत्री बतवली आ अपना पूजा खाती कहली। इनही के पूजा छठ मइया के पूजा के रूप में सुरू भइल।[5]

मनावे वाला लोग[संपादन करीं]

छठ पूजा खाती सजावल गइल घाट
छठ पूजा के दौरान अर्घा देवे से पहिले पानी में खड़ा औरत लोग

छठ मूल रूप से हिंदू लोग के तिहुआर हवे। हालाँकि, कुछ मुसलमान औरत लोग के भी छठ मनावत देखल गइल बा।[6][7][8][9][10] मुसलमान औरतन द्वारा, कौनों बिसेस कष्ट के स्थिति में, हिंदू औरतन द्वारा सलाह दिहल जाए पर ई बरत करे के बात बतावल गइल बाटे आ एकरा के मुसलमान लो के संस्कृति पर हिंदू संस्कृति के परभाव के रूप में भी देखल जाला।[6] दुसरा तरीका से देखल जाय त ई बिहारी लोग के खास तिहुआर के रूप में देखल जाला[11] आ बिहार के लोग में ई तिहुआर धरम के सीमा से ऊपर उठ चुकल बा आ मुसलमान[12][13] आ सिख परिवार के लोग भी एह परब के मना रहल बा।[14]

छठ मुख्य रूप से मेहरारू लोगन के बरत हवे, हालाँकि अब मरदाना लोग भी एह ब्रत के मनावे में पाछे नइखे रहि गइल।[15]

मनावे के तरीका[संपादन करीं]

सूपा में परसाद लिहले पानी में खड़ा एगो ब्रती

मुख्य रूप से ई सुरुज के पूजा हवे, हालाँकि, एह में जेवना देवी के पूजा कइल जाला उनका के छठि मइया कहल जाला। एक साथ, सुरुज के अरघा दिहल आ छठी मइया के पूजा के तइयारी दिपावली के बादे से सुरू हो जाले। दिवाली कातिक के अमौसा के मनावल जाले, एकरे अगिला दिने गोधना कुटाला आ ओहू के अगिला दिने भाई दुइज मनावल जाले। एकरे बाद छठ के तइयारी हो जाला। दू दिन बाद चउथ के तिथि से कार्यक्रम के सुरुआत होला आ अंतिम अरघा सत्तिमी के दिहल जाला। एह चारो दिन के बिबरन नीचे दिहल जात बा:

नहाय खाय[संपादन करीं]

कातिक सुदी चउथ के छठ पूजा के तइयारी के रूप में नहाय खाय से सुरुआत होले। एकरा के अरवा-अरवइन भी कहल जाला। घर के नीक से साफ-सफाई कइल जाला आ एह दिन अइसन सगरी मेहरारू लो जिनके बरत भुक्खे के होला, जे लोग ब्रती कहालीं, कौनों पबित्र जलस्थान, नदी-पोखरा वगैरह में नहान करे लीं। नहान के बाद साफ-सुथरा तरीका से भोजन तइयार कइल जाला। एह दिन मेहरारू लोग एक्के बेरा भोजन करे ला। एह भोजन में लउकी के खास महत्त्व बतावल जाला।[16] अरवा चाउर के भात आ लउकी के तरकारी खा के ब्रत के सुरुआत कइल जाला।[17]

खरना[संपादन करीं]

अरवा-अरवइन के अगिला दिने, मने कि पंचिमी के, एक दिन दिन भर के बरत भुक्खल जाला। ई एक तरह से मुख्य बरत से पहिले के तइयारी होला आ एही से एकरा के खरना कहल जाला। खर कइल के अरथ होला तपावल भा शुद्ध कइल। एह दिन भर के बरत के बाद साँझ के बेरा रोटी के साथे खीर भा बखीर बनावल जाले जेकरा के खरना के परसाद कहल जाला। इहे परसाद खा के मुख्य बरत सुरू होला।

पहिला अरघ[संपादन करीं]

पानी में ऊखि गाड़ के पूजा के तइयारी
छठ पूजा के पहिला अरघ के समय जगमग घाट
सुपेली में रखल परसाद जेह में ठेकुआ के बिसेस महत्व होला

खरना के बाद के रात, आ छठईं तिथी के पूरा दिन आ रात बरत के रात होले। एही छठ तिथी के साँझ बेर नदी, पोखरा के किनारे घाट पर जाइल जाला। घाट पर जा के पूजा के पहिले घरे परसाद बनावल जाला। छठ के परसाद में ठेकुआ बनावल जाला जे गोहूँ के आटा में मीठा डारि के अ घीव के मोएन दे के दूध में सानल जाला आ सुद्ध घीव में छानल जाला। उत्तरी बिहार में एकरा के खासतौर पर माटी के साफ चूल्हा पर बनावल जाला आ साफ लकड़ी के इस्तेमाल कइल जाला।[18] बाकी परसाद में कम से कम तीन किसिम के फल रहे ला। फल सभ में सिंघाड़ा, गंजी, केला, अनन्नास, गागल नींबू, नरियर, आ मुरई वगैरह सामिल रहे ला।[17][19]

घाट पर पहिले से घर के सवाँग लोग सफाई क के माटी के बेदी बनवले रहे ला लोग। घर से दउरा में सगरी परसाद सामग्री सजा के ले जाइल जाला जहाँ दिया-अगरबत्ती बार के परसाद के सूप में सजा के पूजा कइल जाला आ छठ मइया के गीत गावल जाला। एकरे बाद सुरुज के डूबे से पहिले मेहरारू लोग लगभग कर्हियाइ भर से ऊपर पानी में खड़ा हो के सुरुज भगवान के पूजा करे ला। कुछ जगह, जहाँ छठ मइया के साड़ी चढ़ावे के बिधान भी होला, पानी में पाँच गो ऊखि गाड़ल जालीं जिनहन के पतई आपसे में बान्हल रहे ला आ ओही में साड़ी के सजा के ओकरा पाछे से सुरुज के पूजा कइल जाला। पूजा के बाद सुरुज भगवान के अरघा दिहल जाला। अर्घ में पानी में कई तरह के सुगंधित सामग्री मिला के तामा भा पीतर के लोटा में ले के दुनों हाथ से टिकासन से ऊपर उठा के सुरुज के सोझा धार के रूप में गिरावल जाला जेवना से ओह धार से हो के सुरुज के रोशनी चढ़ावे वाला के देह पर परे।

पहिला अर्घा के बाद घाट से सगरी चीज बटोर के घरे आ जाला। कुछ लोग जे संतान खाती मनौती मनले रहे ला एह रात के अँगना में एक तरह के पूजा करे ला जेकरा कोसी भा कोसिया भरल कहल जाला। कोसिया माटी के एगो खास तरह के बर्तन होला जे कोहा के आकार के होला आ एकरा बरि पर दिया बनल रहे लें। एही में चढ़ावा के सामग्री भर के आ दिया सभ के बार के गीति गावल जाला।

दुसरा अरघ[संपादन करीं]

छठ तिथी के अगिला दिने, सत्तिमी के भोरे में लोग घाट पर दोबारा चहुँप जाला आ ओही घाट आ बेदी पर फिर से सारा पूजा के सामग्री सजावल जाले। पानी में खड़ा हो के ब्रती लोग सुरुज उगे के इंतजारी करे ला आ उगत सुरुज के भोर के दुसरा अरघा दियाला। एकरे बाद घरे लवट के परसाद खा के बरत टूटे ला आ पारन कइल जाला।

क्षेत्र[संपादन करीं]

बिहार छठ के पूजा के मूल अस्थान हवे आ मानल जाला कि हेइजे से ई बरत बाकी इलाकन में चहुँपल।[20] बिहार के औरंगाबाद जिला में देव सूर्य मंदिर बा।[21] मानल जाला कि एही जा से छठ के पूजा सुरू हो के बिहार आ बाद में आसपास के राज्य सभ में फइलल।[20] बतावल जाला कि औरंगाबाद के ई जगह, देवकुंडा, महर्षी च्यवन के आश्रम रहल आ उनके पत्नी हेइजा छठ के बरत करें।[20] इहाँ मौजूद वर्तमान सूर्य मंदिर महाराज भैरवेंद्र देव के जमाना (~1450 ईसवी) के मानल जाला।[22] एकरे लग्गे कुछ दूरी पर सूर्यकुंड भी बा।

मूल रूप से बिहार, पूरबी उत्तर प्रदेश आ तराई के इलाका के ई तिहुआर इहाँ के लोग के साथ-साथ भारत के बाकी इलाका में भी पहुँचल बा आ पूर्वोत्तर भारत, बंगाल आ मध्य प्रदेश में भी मनावल जाला।[23] भारत के राजधानी दिल्ली में छठ खाती सरकारी तौर पर इंतजाम कइल जाए लागल बा[24][25] आ मुंबई में भी छठ के सार्वजनिक तौर पर आयोजन कइल जा चुकल बा।[26][27] दिल्ली मुंबई नियर शहर जहाँ बिहार आ उत्तर प्रदेश के लोग के काफी संख्या बा इहाँ त छठ मनावले जालाम अब ई दक्खिन भारत के बंगलौर[28] आ चेन्नई नियर शहर सभ में भी मनावल जाए लागल बा जहाँ यूपी बिहार के लोग के मौजूदगी बा।[29][30]

संस्कृति[संपादन करीं]

छठ पर्ब के बिहार आ पूर्वांचल के लोग के सांस्कृतिक पहिचान के रूप में देखल जाला। कारण की ई पर्ब इहाँ के लोग द्वारा मनावल जाए वाला एगो यूनिक तिहुआर बाटे आ ई तिहुआर इहँवे के लोग मनावे ला, चाहे अपना मूल इलाका में भा जहाँ दुसरी जगह इहाँ के लोग परवास क रहल बा।

छठ के बिबिध महत्व सभ में इहो एगो महत्व देखल गइल बा कि ई नया पीढ़ी के आपस में जोड़े के माध्यम बन रहल बा।[31] हाल में आइल एगो बीडियो में नया पीढ़ी के लोग द्वारा छठ अपनावे के एगो भावुक बीडियो सोशल मीडिया पर वाइरल भइल बा। एह बीडियो में भोजपुरी-बिहारी इलाका से बाहर दुसरे राज्य में रहत युवा लोग द्वारा छठ अपनावे के प्रेरणा दिहल गइल बा।


संदर्भ[संपादन करीं]

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  2. संपादकीय टीम, ओम बुक्स (2013). फेस्टिवल्स ऑफ इंडिया. ओम बुक्स इंटरनेशनल. pp. 56–. ISBN 978-93-81607-81-7.
  3. विद्या बिंदु सिंह (23 मई 2015). अवधी लोक साहित्य में प्रकृति पूजा. प्रभात प्रकाशन. pp. 62–. ISBN 978-93-82898-50-4.
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  5. "कौन हैं छठी मइया और कैसे शुरु हुई इनकी पूजा, पढ़ें रोचक कथा". Amarujala.com. Retrieved 2017-10-15.
  6. 6.0 6.1 मोहसिन सईदी मदनी (1993). इम्पैक्ट ऑफ हिंदू कल्चर ऑन मुस्लिम्स. एम॰ डी॰ पब्लिकेशंस प्रा॰ लि॰. pp. 137–. ISBN 978-81-85880-15-0.
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  9. रामधारी सिंह दिनकर (1956). संस्कृति के चार अध्याय. राजपाल.
  10. "हिंदुओं के साथ मुसलमान भी मना रहे हैं छठ पर्व". Deshbandhu.co.in. 2009-10-24. Retrieved 2017-10-13.
  11. शंकरलाल सी॰ भट्ट (2005). लैंड एंड पीपल ऑफ इंडियन स्टेट्स एंड यूनियन टेरिटरीस: इन 36 वॉल्यूम्स. बिहार. ज्ञान पब्लिशिंग हाउस. pp. 355–. ISBN 978-81-7835-361-6.
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बाहरी कड़ी[संपादन करीं]