सावन
सावन (संस्कृत: श्रावण) हिंदू कलेंडर के एक ठो महीना बा। काशी क्षेत्र में प्रचलन में बिक्रम संवत के अनुसार सावन साल के पाँचवाँ महीना होला। अंग्रेजी (ग्रेगोरियन कैलेंडर) के हिसाब से एह महीना के सुरुआत कौनों फिक्स डेट के ना पड़ेला बलुक खसकत रहेला। आमतौर पर ई जुलाई/अगस्त के महीना में पड़े ला। भारतीय राष्ट्रीय पंचांग, जेवन सुरुज आधारित होला, में सावन पाँचवाँ महीना हवे आ ग्रेगोरियन कैलेंडर के 23 जुलाई से एकर सुरुआत होले। नेपाल में प्रयुक्त कैलेंडर के हिसाब से ई साल के चउथा महीना हवे। बंगाली कैलेंडर में भी ई चउथा महीना होला।
सावन के महीना पूरा भारतीय उपमहादीप खातिर बहुत महत्व वाला हवे। पूरा इलाका में मानसून के आगमन हो जाला आ बरखा के रितु होले। धान के फसल बरखा पर आधारित होखे के कारन बरखा के भारतीय जीवन में बहुत महत्व बा। असाढ़ के बाद सावन बरखा रितु के दूसरा महीना हवे।
धार्मिक सांस्कृतिक रूप से एह महीना में कई गो तिहुआर पड़े लें। सावन के शंकर-पार्वती के पूजा के महीना भी मानल जाला आ बहुत सारा हिंदू लोग सावन के सोमार के ब्रत रहे ला। सावन के सोमार के पार्वती के पूजा के "मंगला गौरी ब्रत" कहल जाला।
नाँव
[संपादन करीं]सावन शब्द संस्कृत के "श्रावण" से बनल सहज रूप हवे। श्रावण के शाब्दिक अर्थ श्रवण नक्षत्र में जनमल होला[1] हालाँकि इहाँ एह महीना के नाँव श्रावण एह कारन रखल गइल ह कि एह महीना में सुरुज के आकाशीय स्थिति "श्रवण" नाँव के नक्षत्रमंडल में होले।
सावन के पूर्णिमा (पुर्नवासी) के श्रावणी कहल जाला।
ब्रत-तिहुआर
[संपादन करीं]सावन के महीना धार्मिक आ सांस्कृतिक रूप से काफी महत्व वाला हवे। एह महीना में कई गो तिहुआर पड़े लें[2] जेह में से कुछ मुख्य तिहुआर नीचे दिहल जात बा:
हरियाली तीज
[संपादन करीं]नेपाल, बिहार आ उत्तर प्रदेश में मुख्य तीज के तिहुआर भादों के महीना में मनावल जाला, हालाँकि सावन के अँजोर के तीसरी तिथी, यानी कि तीज के हरियाली तीज के रूप में मनावे के चलन हवे। हरियाली तीज के महत्व पच्छिमी भारत के इलाका में ढेर हवे जबकि पूरबी भारत में भादों के तीज प्रमुख रूप से मनावल जाले जेकरा के हरतालिका तीज कहल जाला।
नागपंचिमी
[संपादन करीं]सावन के अँजोर पाख के पंचिमी तिथि के नाग देवता लोग के पूजा कइल जाला। उत्तर प्रदेश में एह दिन धान के लावा आ दूध चढ़ावल जाला। जगह-जगह अखाड़ा में कुश्ती के आयोजन भी होला आ कबड्डी आ चिकई नियर खेल के भी।
रक्षाबंधन
[संपादन करीं]सावन के पुर्नवासी के दिन हिंदू लोग के बहुत प्रचलित आ पबित्र मानल जाए वाला तिहुआर रक्षबंधन के रूप में मनावल जाला। ब्राह्मण लोग एह दिन जजिमान के रक्षा के सूत बान्हे ला। पच्छिमी भारत में ई तिहुआर भाई-बहिन के तिहुआर के रूप ले लिहलस आ अब ई लगभग पूरा भारत में एही रूप में ढेर प्रचलित हो चुकल बा। एह दिन बहिन लोग अपना भाई के राखी के रंगीन सूत बान्हे ला आ अपना रक्षा के बचन लेला।
श्रावणी मेला
[संपादन करीं]झारखंड के देवघर में, बैजनाथ धाम में, सावन के पुर्नवासी के बिसाल मेला के आयोजन होला जेह में काँवरिया लोग भारी संख्या में एकट्ठा होला। सावन भर चले वाला काँवर जात्रा के ई आखिरी दिन होला।
काँवर यात्रा
[संपादन करीं]काँवर यात्रा में सावन के महीना में गंगाजल भर के ओकरा के काँवर पर ढोवल जाला आ पैदल यात्रा क के कौनों लोकल शिव मंदिर भा कौनों बिसेस शिव मंदिर में शंकर जी पर चढ़ावल जाला। अइसन यात्रा करे वाला लोगन के "काँवरिया" चाहे "भोले" कहल जाला। बिहार में ई देवघर के बाबा धाम (वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग) के प्रमुख यात्रा हवे। यात्री लोग "बोल बम" के नारा लगावे ला।
कजरी
[संपादन करीं]सावन में गावल जाए वाला खास लोकगीत हवे। एह से उपशास्त्रीय बिधा के पैदाइश भी भइल हवे जेकरा के कजरी कहल जाला, हालाँकि अपना मूल रूप में ई सावन के लोकगीत हवे। झुलुआ डाल के कजरी गा-गा के झुलुआ खेले के कजरी खेलल कहल जाला।
संदर्भ
[संपादन करीं]- ↑ V. S. Apte (2007). Sanskrit-Hindi Kosh Raj Sanskaran. Motilal Banarsidass Publishe. pp. 1050–. ISBN 978-81-208-2097-5.
- ↑ Jai Narain Kaushik (2002). Hamare Teej-Tyohar Aur Mele. Star Publications. pp. 39–. ISBN 978-81-85244-67-9.
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