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हिंदू पतरा के खगोलशास्त्रीय आधार

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सौर मंडल के भूकेंद्रीय (जियोसेंट्रिक) मॉडल के निरूपण करे वाला एनिमेशन।

हिंदू पतरा भा हिंदू कैलेंडर सौरमंडल के भूकेंद्रित मॉडल पर आधारित हवे।[1] भूकेंद्रित (जियोसेंट्रिक) मॉडल में सौर मंडल के अइसन तरीका से कल्पित कइल जाला जइसे कि पृथ्वी के सतह पर से केहू देखे वाला ब्यक्ति द्वारा देखले पर ई लउके ला।

हिंदू कैलेंडर में समय के नौ किसिम के माप बतावल गइल बा:[2]

  1. ब्राह्म मान
  2. दिव्य मान
  3. पित्राय मान
  4. प्रजापत्य मान
  5. गुरोर् मान
  6. सौर मान
  7. सावन मान
  8. चांद्र मान
  9. नाक्षत्र मान

एह में से खाली अंतिम चार किसिम के माप सभ वर्तमान में प्रयोग में बाड़ें[3] आ इहाँ इनहने के बारे में बतावल गइल बा।

चांद्र मान

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चांद्र मान चाहे चंद्र मान के हिंदू कैलेंडर के परिभाषा चंद्रमा के पृथ्वी के चारों ओर के परिकरमा वाली गति के आधार पर कइल जाला। अमौसा (संस्कृत: अमावास्या) आ पुर्नवासी (संस्कृत: पूर्णिमा ) एह कैलेंडर में महत्वपूर्ण निशान भा सभसे बेसी चीन्हल जाये वाला चीन्हा होखे लें।

हिंदू कैलेंडर के चंद्र मान में नीचे लिखल सिनोडिक कैलेंडर तत्व सभ के परिभाषित कइल गइल जाला:

चांद्रमास आ पक्ष के निरूपण करत एगो एनिमेशन।

कौनों पाख चाहे पक्ष (संस्कृत: पक्ष) चंद्रमा के अमौसा से पुर्नवासी तक ले जाए में लागे वाला समय चाहे एकरे बिपरीत लागे वाला समय हवे। चंद्रमा के बढ़त चरण के अँजोर पाख (संस्कृत: शुक्ल पक्ष) आ घटत चरण के अन्हार पाख (संस्कृत: कृष्ण पक्ष) के नाँव से जानल जाला। एक पाख के दौरान चंद्रमा पृथ्वी-सूरज के अक्ष के संदर्भ में देखले पर 180° आगे बढ़े ला।

चांद्रमास

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चांद्रमान आ वर्ष के निरूपण करत एगो एनिमेशन।

एक चंद्रमास (संस्कृत: चान्द्रमास), मने की चंद्रमा आधारित महीना, चंद्रमा के एक अमौसा से अगिला अमौसा ले जाए में लागे वाला समय हवे (अमांत संस्कृत: अमान्त परंपरा में) या एक पुर्नवासी से अगिली पुर्नवासी ले (पूर्णिमांत संस्कृत: पूर्णिमान्त परंपरा के हिसाब से)।[4][note 1] आसान भाषा में कहल जाय त चंद्रमास चंद्रमा के सिनोडिक काल हवे, जेकरा के दू गो पाख में बाँटल जाला। एगो पूरा चंद्रमास के दौरान चंद्रमा पृथ्वी-सूर्य अक्ष के संबंध में 360° आगे बढ़े ला।

चांद्रमान बरिस

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चांद्र मान वर्ष भा चंद्र वर्ष लगातार 12 गो चंद्रमास सभ से बनल होला।[5] एह बारह गो चंद्रमा सभ के बिसेस नाँव चइत, बइसाख वगैरह दिहल जाला।[note 2] ई नाँव देवे के आधार चंद्रमा के नक्षत्र में स्थिति के देख के होला; जइसे की चइत के मतलब हवे कि एह महीना के पुर्नवासी के चंद्रमा चित्रा नक्षत्र में स्थित होखे ला।

कुछ दसा में चंद्र मान वर्ष के सौर वर्ष या सौर मान वर्ष के साथ सटीकता से मिलान करे खातिर एगो बेसी चंद्रमास जोड़ल जाला, जेकरा के अधिकमास, मलमास, भा पुरुषोत्तम मास के नाँव से जानल जाला।

चांद्र मान आ तिथी के निरूपण करत एगो एनिमेशन।

एक ठो तिथी (संस्कृत: तिथि) चंद्रमा के पृथ्वी-सूरज के अक्ष के संबंध में 12° आगे बढ़े में लागे वाला समय हवे।[6] दुसरा शब्द में कहल जाय त तिथी चंद्रमा के एलोंगेशन (क्रांति पथ भा परिकर्मा के रस्ता पर) 12° बढ़े में लागे वाला समय हवे। एक ठो तिथि कौनों पाख के पनरहवाँ हिस्सा आ कौनो चंद्रमास के तीसवाँ हिस्सा होला। एगो तिथि चंद्र दिवस के कांसेप्ट से मेल खाला।

तिथि के पक्ष में स्थिति के हिसाब से संस्कृत गिनती के आधार पर नाँव दिहल जाला, यानी प्रतिपदा (पहिली तिथी भा एक्कम), द्वितीया (दुसरी तिथी भा दुइज) आदि। पन्द्रहवाँ यानी कि कृष्ण पक्ष के अंतिम तिथि के अमावस्या (अमौसा) आ शुक्ल पक्ष के पन्द्रहवीं तिथि के पूर्णिमा (पुर्नवासी) कहल जाला।[7]

सौर मान

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सौरमान (संस्कृत: सौर मान) के हिंदू कैलेंडर में पृथ्वी के सूर्य के चारों ओर के गति के आधार पर परिभाषित कइल जाला।[8] एह में सिडेरियल भा नाक्षत्र (संस्कृत: निरयन) आ अयन आधारित (संस्कृत: सायन) दू किसिम के सिस्टम होखे लें।

साइडेरियल भा नाक्षत्र तत्व

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बारह गो राशि (आ सौर मास) जे मिल के सौर मान बनावे लें, के निरूपण करत एगो एनिमेशन।

सौर मान वर्ष भा साइडेरियल साल ऊ समय हवे जे सुरुज के स्थिर तारा सभ के संदर्भ में एक बेर पृथ्वी के चक्कर लगावे आ सुरुआती बिंदु पर वापस आवे में लागे ला। ज्यादातर दसा में शुरुआती बिंदु के निर्धारण सूर्य के ओह स्थिति के रूप में कइल जाला जब ऊ चितरा (संस्कृत: चित्रा) नछत्तर में स्थित होखे ला।[9] [11][12]

एक ठो राशि (संस्कृत: राशि) पृथ्वी के चारों ओर सुरुज के कक्षा के 30° के चाप हवे[13] (अर्थात परिक्रमा पथ के चाप)। जीटा पिसियम ( रेवती) के आसपास से शुरू हो के बारह (अर्थात 360° के 30° से भाग दिहले पर) राशी के मेष (संस्कृत: मेष), वृषभ (संस्कृत: वृषभ) बारह गो नाँव से जानल जाला। एगो सौरमास (संस्कृत: सौरमास), मने की सुरुज आधारित महीना, सूरज के कवनो एक ठो राशी के पार करे में लागे वाला समय हवे।[4] सौरामस के नाम संबंधित राशी से के आधार पर पड़े ला। सौरमास एक अंग्रेजी महीना (मंथ) के कांसेप्ट से मेल खाला। समय के जवना क्षण में सूर्य के राशी में प्रवेश होला, ओकरा के संक्रमण (संस्कृत: सङ्क्रमण) या संक्रांति (संस्कृत: सङ्क्रान्ति) कहल जाला।

उत्तरायण आ दक्षिणायन के निरूपण करे वाला एगो एनिमेशन।
देवायन आ पित्रायन के निरूपण करे वाला एगो एनिमेशन।

अयन आधारित तत्व

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ई समय काल संक्रांति (संस्कृत: अयन) आ विषुव (संस्कृत: विषुवत्) के आधार पर परिभाषित कइल जाला।[14]

जाड़ा के संक्रांति से ग्रीष्मकालीन संक्रांति में जाए में सुरुज के लागे वाला समय के उत्तर के ओर जाए के संस्कृत: उत्तरायण नाँव से जानल जाला आ सूरज के ग्रीष्मकालीन संक्रांति से जाड़ा के संक्रांति में जाए में लागे वाला समय के दक्षिण के ओर जाए वाला संस्कृत: दक्षिणायन कहल जाला। पृथ्वी के अक्षीय झुकाव के कारण उत्तरायण के दौरान सुरुज मकर रेखा से कर्क रेखा में उत्तर के ओर बढ़त लउके ला आ दक्षिणायन के दौरान कर्क से मकर के ओर दक्खिन के ओर बढ़त लउके ला।[16]

सूरज के बसंत विषुव (परिक्रमा पथ भा क्रांतिवृत्त देशांतर 0°) से शरद ऋतु के विषुव (क्रांतिवृत्त देशांतर 180°) में जाए में लागे वाला समय के देवायन (संस्कृत: देवयान) के नाँव से जानल जाला। शरद ऋतु के विषुव से वसंत विषुव में जाए में सूर्य के जवन समय लागेला ओकरा के पितृयाण (संस्कृत: पितृयाण) के रूप में नामित कइल जाला। पृथ्वी के अक्षीय झुकाव के कारण देवयान के समय सुरुज उत्तरी आकाशीय गोला में आ पितृयाण के दौरान दक्खिनी आकाशीय गोला में लउके ला। हिंदू परंपरा में उत्तर आकाशीय गोला देवता लोग (देव) आ दक्खिन आकाशीय गोला के पूर्वज (पितृ) के समर्पित कइल जाला। देवयाण आ पितृयान अब सक्रिय कैलेंडर के प्रयोग में नइखे बाकिर पितृपक्ष के निर्धारण के आधार जरूर बने ला।

छह गो ऋतु (सीजन) सभ के निरूपण।

एगो रितु (संस्कृत: ऋतु)[19] सूरज के पृथ्वी के चारों ओर अपना कक्षा पर साठ डिग्री ले चले में लागे वाला समय हवे।[note 3] ऋतु अंग्रेजी के सीजन के अवधारणा से मेल खाला।

हिंदू परंपरा के हिसाब से साल के छह ऋतु के नाँव बाटे:

  • शिशिर ऋतु (जाड़ा)
  • वसंत ऋतु (वसंत)
  • गृष्म ऋतु (गर्मी)
  • वर्षा ऋतु मानसून के सीजन, गर्मी के संक्रांति से शुरू
  • शरद ऋतु (शरद ऋतु)
  • हेमन्त ऋतु (जाड़ा से पहिले)

नाक्षत्र मान

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नाक्षत्र मान (संस्कृत: नाक्षत्र मान) के स्थिर तारा सभ के संबंध में परिभाषित कइल जाला, एह से सभ तत्व सभ साइडेरियल प्रकृति के होखे लें।

नाक्षत्र मान दिन के निरूपण करे वाला एनिमेशन

एक ठो दिन आकाशीय गोला के पृथ्वी के चारों ओर एक ठो साइडेरियल घुमाव पूरा करे में लागे वाला समय हवे।[20][note 4] वास्तविकता में ई गति पृथ्वी के अपना धुरी पर दिन भर घूमे के कारण होला। एह परिभाषा के इस्तेमाल ब्यवहार में ना होला बलुक समय के नीचे लिखल छोट इकाई सभ के परिभाषित करे खातिर जरूरी होला। एही कारन एक ठो नाक्षत्र भा साइडेरियल दिन 24 घंटा से ~4 मिनट कम होखे ला।

एक घटी (संस्कृत: घटिका) या नाड़ी (संस्कृत: नाडी) नक्षत्र दिन के साठवाँ हिस्सा होला, यानी 24 मिनट से कुछ कम।

एक विघटिका (संस्कृत: विघटिका) या विनाडी (संस्कृत: विनाडी) घटी के साठवाँ हिस्सा होला, यानी 24 सेकंड से कुछ कम।

एक प्राण (संस्कृत: प्राण) भा आसु (संस्कृत: असु) विघटिका के छठवाँ हिस्सा होला, यानी चार सेकंड से कुछ कम।[21]

सावन मान

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सावन मान (संस्कृत: सावन मान) हिंदू पतरा में सिविल टाइम, चाहे आम बेहवार के समय, के परिभाषित करे ला।

सावन मान दिन के निरूपण करे वाला एनिमेशन।

एक दिन (संस्कृत: दिन) लगातार दू गो सूर्योदय के बीच के समय हवे।[22] दिन सौर दिन के कॉन्सेप्ट से मेल खाला। दिवा प्रकाश के लंबाई के हिसाब से दिन के लंबाई बदलत रहेला।

नक्षत्र

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सताइस गो नक्षत्र (नछत्तर) सभ के निरूपण करे वाला एनिमेशन।

ऊपर बतावल गइल चार गो मान के अलावा नक्षत्र के अवधारणा हिंदू पंचांग के एगो महत्वपूर्ण विशेषता हवे। एह शब्द के कई गो अर्थ होला:[23]

  1. एगो नक्षत्र (संस्कृत: नक्षत्र) एगो तारा के कहल जाला।
  2. नक्षत्र एगो तारा आधारित गणना हवे। एह परिभाषा में मौजूद एगो तारा के एकर प्रमुख तारा (संस्कृत: योगतारा) के रूप में नामित कइल गइल जाला। एकरे अलावा अइसन अट्ठाईस गो नक्षत्र बाड़ें आ इनहन के अलग-अलग नाँव दिहल गइल बा। नक्षत्र के नाम आ ओकर योगतार एके जइसन होला। उदाहरण खातिर रेवती एगो तारासमूह भा तारामंडल हवे जेकर मुख्य तारा रेवती (जीटा पिसियस) हवे।
  3. नक्षत्र क्रांतिपथ के 13° 20' के बरोबर के चाप हवे।[6] अइसन सत्ताईस गो नक्षत्र (अर्थात 360° के 13° 20' से भाग दिहल) बा। रेवती (Zeta Piscium) के आसपास से शुरू हो के इनहन के नाँव अश्विनी, भरणी वगैरह रखल गइल बा[note 5] ई नाँव ओह तारामंडल सभ के नाँव से मिलत जुलत होलें जे संबंधित चाप खंड सभ के भीतर स्थित होलें। उदाहरण खातिर रेवती तारामंडल आ चाप खंड दुनों के कहल जाला जेकरा भीतर ई तारामंडल भा तारा सभ के समूह स्थित होला।
  4. कैलेंडर के हिसाब से नक्षत्र ऊ समय हवे जे चंद्रमा के कौनों नक्षत्र (तारामंडल भा तारा समूह) के पार करे में लागे ला (जइसे कि बिंदु 3 में परिभाषित कइल गइल बा)। एही से नक्षत्र एगो सिडेरियल तत्व हवे (तिथि के बिपरीत जवना से ई मिलत जुलत होला) आ एक दिन के कांसेप्ट से मेल खाला।

समय के अलग-अलग माप के संयोजन

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ऊपर बतावल गइल चार गो मान सभ के इस्तेमाल हिंदू पतरा में आपसी संयोजन में होखे ला।

अधिकमास

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अधिकमास के निरूपण करे वाला एनिमेशन।

जइसे कि ऊपर देखल गइल बा, कैलेंडर के चंद्र मान आ सौर मान दुनों में बारह गो मास वाला वर्ष के परिभाषा दिहल गइल बा, बाकी वर्ष के अवधि अलग-अलग होला; चंद्र मान वर्ष सौर मान वर्ष से लगभग एगारह सावन दिन छोट होला। एकरे परिणाम के रूप में, जबले कि स्पष्ट रूप से समन्वय ना कइल जाई तबले कैलेंडर के ई दुनों हिस्सा समय के साथ अलग-अलग हो जइहें, काहें से कि चंद्र मान वर्ष सौरा मान वर्ष से "पिछड़त" रही।

कैलेंडर के एह दुनों हिस्सा के समन्वय करे खातिर कुछ चंद्र मान वर्ष में एगो अतिरिक्त चंद्रमास के प्रवेश करा दिहल जाला।[note 6] अइसन चंद्रमास के अधिकमास ( संस्कृत: अधिकमास कहल जाला ) मलमास, भा पुरुषोत्तम मास कहल जाला। अधिकमास के नाम ओह आम चंद्रमास के नाम से लिहल जाला जवन ओकरा बाद आवेला, यानी अधिक आश्विन मास आश्विन मास (कुआर) से ठीक पहिले होला।

अधिकतर समय हर चंद्रमास में संक्रमण पड़े ला। अगर कौनों चंद्रमास में संक्रमण ना होखे तब ओह चंद्रमास के अधिकमास के रूप में नाँव दिहल जाला एह तरीका से चंद्र मान वर्ष सौर मान वर्ष के "पकड़" लेला आ पछुआए ना पावे ला। ई लगभग हर ढाई (सौर) साल में एक बेर होखे ला।

दिन आ तिथि

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जइसे कि ऊपर देखल गइल बा, कैलेंडर के चंद्र मान आ सावन मान दुनों में दिन के अवधारणा के क्रम से तिथि आ दिन के रूप में परिभाषित कइल गइल बा। दिन के नाँव ना दिहल जाला आ कैलेंडर के काम खातिर इस्तेमाल ना कइल जाला। एकरा बदले तिथि के प्राथमिकता दिहल जाला।[4][note 7]

मनुष्य के जीवन के नियंत्रण सुरुज के उगला से होला आ चंद्रमा के 12° चाप के माध्यम से चले से ना। एही से सूर्योदय के समय चंद्रमा के स्थिति के इस्तेमाल सूर्योदय के समय प्रचलित तिथि के निर्धारण करे खातिर कइल जाला। एह िथि के तब पूरा सावन दिन खातिर मान लिहल जाला। आ उदया तिथी कहल जाला

उदाहरण खातिर: ग्रेगोरियन तारीख 18 सितंबर 2021 पर विचार करीं। हिंदू लोग एकरा के "कन्या मास के दुसरा दिना" के रूप में संदर्भित करे के बजाय " भाद्रपद मास, शुक्ल पक्ष, द्वादाशी तिथि" के रूप में संदर्भित करी, जवन ओह सवन दिना के सूर्योदय के समय प्रचलित तिथि हवे। भले ही चंद्रमा सूर्योदय के तुरंत बाद (6:54AM पर) त्रयोदशी चाप में चल जाला, लेकिन ऊ पूरा सावन दिना के द्वादाशी तिथि मानल जाला।

अधिक तिथि आ क्षय तिथि

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अधिकतिथी देखावत एगो एनीमेशन
क्षय तिथी के देखावत एगो एनिमेशन।

संभव बा कि लगातार दू गो सूर्योदय में एकही तिथि हो सके, मने कि चंद्रमा लगातार दू गो सूर्योदय के पार एकही 12° चाप के भीतर रहे। अइसना में लगातार दू गो सावन दिन एके तिथि से जुड़ल होखीl। दूसरा सावन दिन से जुड़ल तिथि के अधिक (अतिरिक्त) तिथि कहल जाला

इहो संभव बा कि दू गो सूर्योदय के बीच में पूरा तिथि बीत जाव, मने कि चंद्रमा दू गो सूर्योदय के बीच में 12° के चाप के पार करे (एक बेर सूर्योदय के बाद चाप में प्रवेश करेला आ अगिला सूर्योदय से पहिले चाप से बाहर निकल जाला)। एह अइसन स्थिति में एह तिथि से सावन दिन के ना जोड़ल जाई, मने कि एह तिथि के कैलेंडर में छोड़ दिहल जाई। अइसन तिथि के क्षय (लुप्त भा गायब) तिथि कहल जाला

एगो सावन दिन के उपविभाग

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हमनी के ऊपर देखले बानी जा कि एगो नक्षत्र दीना के घाटीका (24-24 आधुनिक मिनट के) आ विघटिका (24-24 आधुनिक सेकेंड के) में बाँटल जाला। एही इकाई सभ के इस्तेमाल सूर्योदय के सुरुआती बिंदु के रूप में इस्तेमाल क के कौनों सवाना दिना के उपबिभाजन करे खातिर कइल जाला, मने कि सूर्योदय के बाद के पहिला 24 मिनट पहिला घाटीका के गठन करे ला, अगिला 24 मिनट दुसरा घाटीका के गठन करे ला वगैरह।

पितृपक्ष भा पितरपख

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पितरपख भा पितृपक्ष (संस्कृत: पितृपक्ष) एगो पक्ष हवे जेह में सुरुज भूमध्य रेखा के पार क के दक्खिनी गोलार्ध के ऊपर संक्रमण करे ला, मने कि शरद ऋतु के विषुव पितृपक्ष के भीतर होला।[note 8]

भाद्रपद मास मने की भादों के महीना के कृष्ण पक्ष (अन्हार पाख) के पहिचान पितृपक्ष के रूप में कइल जाला। ई पहिचान हमेशा सही ना होला। उदाहरण खातिर ग्रेगोरियन साल 2020 में भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष के अंत 17 सितंबर के अमावस्या के साथ भइल जबकि शरद ऋतु के विषुव पांच दिन बाद, 22 सितंबर के भइल।

  1. All examples in this article assume the amānta tradition.
  2. These names are derived from the nakṣatra in which the moon is positioned at the time of full moon.
  3. Since a rāśi is a 30° arc of the ecliptic, a ṛtu can be considered as the time taken by the sun to transit through two rāśi.
  4. A sidereal rotation is defined with respect to the fixed stars, i.e. at the end of a sidereal rotation all the fixed stars are back in their starting position.
  5. abhijit is an asterism for which there is no corresponding arc segment.
  6. This is a common calendric technique and is known as intercalation
  7. As a result, almost all Hindu festivals are defined in cāndra māna terms. Hence these annual festivals do not repeat on the same day on any solar calendar (neither saurana māna nor Gregorian).
  8. Since the south celestial sphere is consecrated to the ancestors (IAST:pitṛ), Hindus perform special religious rites in honour of their ancestors during pitṛpakṣa.
  1. Burgess 1935, p. 285 (XII. 32)
  2. Burgess 1935, p. 310 (XIV. 1)
  3. Burgess 1935, p. 310 (XIV. 2)
  4. 4.0 4.1 4.2 Burgess 1935, p. 8
  5. Burgess 1935, p. 7 (I. 13)
  6. 6.0 6.1 Burgess 1935, p. 104 (II. 64)
  7. Burgess 1935, p. 106
  8. "Satapatha-brahmana Verse 8.7.3.10 [Sanskrit text]". www.wisdomlib.org (अंग्रेजी में). 18 September 2021. Retrieved 8 December 2022.
  9. Ketkar 1923. pp. 34–35
  10. Mercier (2018). pp. 74–75
  11. Not everyone is in agreement with this definition. Mercier argues that Ketkar has interpreted a Sanskrit source in a way that is different from other authorities. Yet, this definition is widely used to create Hindu almanacs or pañcāṅga).[10]
  12. Burgess 1935, p. 230
  13. Burgess 1935, p. 16 (I. 28)
  14. Tilak 1955, pp. 20–31
  15. Burgess 1935, p. 313 (XIV. 9)
  16. The Surya Siddhantha defines uttarāyaṇa and dakṣiṇāyana using rāśi instead of the equinoxes and solstices.[15] That definition assumed a coincidence of the winter solstice and makara saṅkramaṇa. As a result of the precesstion of the equinoxes, that coincidence no longer exists thus making that definition incorrect. To illustrate, as per the Surya Siddhantha definition, the period from winter solstice (Dec 21) to makara saṅkramaṇa (Jan 14) is considered part of dakṣiṇāyana but the Sun is moving towards the north during this period.
  17. Burgess 1935, p. 313 (XIV. 10)
  18. Burgess 1935, p. 207
  19. The Surya Siddhanta defines ṛtu in terms of various rāśi[17] assuming that makara saṅkramaṇa coincides with the winter solstice.[18] Due to the precession of the equinoxes, that assumption is no longer true and hence those definitions of ṛtu are no longer accurate.
  20. Burgess 1935, p. 314 (XIV. 15)
  21. Burgess 1935, p. 5 (I. 11)
  22. Burgess 1935, p. 319 (XIV. 18)
  23. Burgess 1935, pp. 202–250