लछिमी सखी

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लछिमी सखी (1841–1914) चाहे लक्ष्मी दास एगो संत आ भोजपुरी कवि आ लेखक रहलें, जे मुख्य रूप से भजन आ कजरी गीत खातिर जानल जालन। उनकर जनम बिहार के सारण जिला में भइल रहे। उनकर मूर नाँव लछिमी दास रहे बाकिर जबसे ऊ सखी संप्रदाय के अनुयायी बनलें तबसे उनुका के लछिमी सखी के नाँव से चिन्हल जाए लागल। अमर फारस, अमर बिलास, अमर कहानी आ अमर सीधी नाम के चारगो भोजपुरी ग्रंथ के रचनिहार रहलें।

लछिमी सखी
जनमलछिमी दास
1841
सारण, बिहार, भारत
निधन1914
पेशाकवि आ साधु
भाषाभोजपुरी / 𑂦𑂷𑂔𑂣𑂳𑂩𑂲

जिनगी[संपादन करीं]

इनकर जनम बिहार के सारण जिला के अमनौर गाँव में 1841 में भइल रहे। इनकर बाबूजी मुंशी जगमोहन दास रहले। ईनकारा मातृभाषा भोजपुरीफारसी भाषा के ज्ञान रहे। 1857-58 में ऊ अघोरीयन के टोली में शामिल भइले, बाकिर उनहन के रीति-रिवाज उनका नीक ना लागल आ तनीके बेरा में छोड़ देलन। ओकरा बाद तनीका समय मोतिहारी के केथवलिया मठ में रहलन आ ओकरा बाद तेरुआ गाँव में नारायणी नद्दी के अरीया एगो पलानी बनवले। सालनले ध्यान के बाद अंत मे उनकारा 1862 में ज्ञान अर्जित भइल।

दर्शनशास्त्र[संपादन करीं]

सखी सम्प्रदाय के अनुयायी रहलें, जवना में भगवान के पति आ आत्मा के पत्नी मानल जाला। ई संप्रदाय छूआ-छूत में बिश्वास ना करे आ अनुयायी लोग लुग्गा ना पेन्हेला। सखी संप्रदाय राम भगवान के सखी मान के कबिता आ गीत लिखे के परंपरा के शुरुआत कइलें। ऊ निर्गुण देवता के आस्तिक रहले। ऊ ओह सर्वव्यापी देवता के रघुनाथ, अवधपति, गोपाल, नंदलाल आदि कहले बाड़ें।

इनकर ग्रन्थ "अमर सीधी" के एगो कविता के एगो छंद के रूप नीचे दिहल गइल बा:

"राखी तोरे पियवा देइ गइलें एगो पतिया
बारऽहु दियावा जराई लेहु हियवा
समुझी समुझी के बतिया।।"

"तोहार पति एगो पाति रखले बाड़े दीया जरा के आहत के जरा दीं पाति में शब्द पढ़ला के बाद।।"

ई कविता भगवान के पति मान के लिखल गइल बा।

साहित्यिक काज'[संपादन करीं]

लछिमी साखी चारगो भोजपुरी ग्रंथ के रचना कइले बाड़े‌‌। जिनहन में सामूहिक रूप से 3250 गो श्लोक बा:

  • अमर सीधी (885 श्लोक)
  • अमर बिलास (875 श्लोक)
  • अमर फरस (925 श्लोक)
  • अमर कहानी (565 श्लोक)

संदर्भ[संपादन करीं]