बूँट


बूँट चाहे चाना (अंग्रेज़ी: Chickpea) एगो सब्जी हवे। भोजपुरी में बूंट के अन्न के राजा मानल गइल बा | एह अन्न के खेती कार्तिक महीना में बो के चैत्र तक काट लिहल जाला। एकर पौधा 2 से 2.5 फुट के उचाई तक होला एकर पत्ता एकदम छोट ,खाए में नुन्छाह लागेला| एक पौधा में 1 से 5 किलो बूंट फरेला एकर फूल छोट छोट बैगनी रंग के होला बूंट के खेत देखे में बहुत सुन्दर लागेला | एकरा के हिंदी में चना अंग्रेजी में "gram" अथवा "chickpea " कहल जाला | भौगोलिकता जलवायु आ माटी के असर के कारन एकर रंग आकर स्वाद अलग अलग बदल जाला |
प्रयोग
बूंट के बहरूपिया बह्गुनिया अन्न के उपाधि प्राप्त बा कबिबर तेज नारायण पाण्डेय जी बूंट के बारे में लिखत बानी :-
जैसे चाहे वैसे भावे बूंट सुरतिया मनके |
थकल किशान के राहत देवे सवाद चटकार राजन के ||
कांचे फांक भूंजी चबाव चाहे खा तू तलके |
चीखना के अनमोल खज़ाना स्वस्थ रखेला तन के ||
बूंट के जमते 4 हफ्ता के बाद से एकर प्रयोग शुरू हो जाला एकरा छोट छोट फुनगी के खोंट के रामरस (नून) जंवाईंन के संगे कांचे खाइल जाला एकरा के आगि प पका के भी खाइल जाला ई बहुत सुलभ आ स्वास्थ्य बर्धक होला एकरा के सागी कहल जाला बूंट के थान फुलाए तक सागी के रूप में प्रयोग कइल जाला। लगभग 25 दिन बाद से एकरा में ढेंढी लाग जाला एह समय में कमजोर ढेंढी वाला पौधा के खेत से छांट के अलग कर लिहल जाला आ सुखल पतई बटोर के लहरा के बूंट के थान लहर प सेंकी के खाइल जाला एकरा के होरहा कहल जाला होरहा के प्रयोग पहिला हाली लगभग फाल्गुन महीना के अंत में होला ओकरा बाद ढेंढी पाके शुरू हो जाला 20-25 दिन में ढेंढी पक्ला के बाद फसल काट लिहल जाला कटला बाद बैल से अथवा आधुनिक मशीन से दँवरी करके अन्न आ भूसा के अलग कर लिहल जाला
संदर्भ[संपादन करीं]
चना अऊर चना के दाल न खाली स्वास्थ्य और सौंदर्य में लाभकारी होत हय बल्कि बहुत कुल रोग के ठीक करय में मदद करत हय।
एहमें कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, नमी, चिकनाई, रेशे, केल्शियम, आयरन व विटामिन्स पाय जात हय।
कब्ज, डायबिटिज अऊर पीलिया जइसन रोग में बड़ा फायदा करत हय।
चना हमन लोग के शरीर में प्रोटीन के आपूर्ति करत हय एहि खातिर एके प्रोटीन के राजा कहा जात हय।
![]() | ई सब्जी-संबंधी लेख एगो आधार बाटे। जानकारी जोड़ के एकरा के बढ़ावे में विकिपीडिया के मदद करीं। |