धरनीदास

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धरनीदास
जनमधरनीदास
1646
माँझी, छपरा, बिहार
निवासबिहार
दूसर नाँवगैबी
मतपरंपरारामानन्दी सम्प्रदाय
मुख्य इन्ट्रेस्ट

धरनीदास (कैथी:𑂡𑂩𑂢𑂲𑂠𑂰𑂮) (1646-1688) एगो रामानन्दी संत आ भोजपुरी कवि रहलें जे भोजपुरी साहित्य[1][2] के विकास में महत्वपूर्ण योगदान देले बाडे़। ऊ एगो कायस्थ परिवार[3] के रहलें आ सम्राट औरंगजेब के समकालीन रहलें। इनके अनुयायीयन के धरनीदासी कहल जाला जे लोग गर्दन में मनका वाला माला पेन्हेले, भजन गावेले आ शाकाहारी होले।[4]

जिनगी[संपादन करीं]

उनकर जलम 1646 ई.स. मे बिहार के छपरा के लगे माँझी गाँव के कायस्थ परिवार में भइल रहे। उनके बाबुजी के नाँव परशुरामदास आ महतारी के नाँव बिरमा देवी रहे। उनकर लड़िकाई के नाँव गैबी[5] रहल। उनकर पुरखा लोग माँझी जागीर में दीवान के पद पर काम करत रहले। उ संत बने से पहिले राज्य के सेवो कइले।

संत बने के लोकप्रिय काथा ई बा के, एक बेरा ऊ आपन काम करत रहले, के एक्बएग लगे रखस लोटा उठा के मेज पर रखल कागज आ बसता पर पानी के ऊझिल देले, अइसन करे के कारण पूछला पर ऊ जवाब दिहले कि भगवान जगन्नाथ के आरती बेरा उनके चिर मे आग लगऽल रहे आ ऊ आग बुतावेला अयीसन कइले हऽ। एह बात पर जमीनदार आ उनकर अधिकारीयन के विश्वस ना भइल आ उनकर हसी उरवले। एह पर धरनीदास कहले,

" लिखनी नाही करो रे भाई।

मोहे राम नाम सुधी आई ।। "

जब उहवा के महाराजा के ई बात मालूम चलऽल तऽ उ आपन भरोसा के आदमीयन के जगन्नाथ पेठवले। उहवा से मालूम परल के उ बेरा जब धरनीदास मेज पर पानी भरल लोटा उझीलले ठिक उसे बेरा उनकरे रूप के मनुष उहवा प्रकट भइल आ आरती से लागल आग भुतवलक आ बिलागयेल। ई बात सुनला के बाद महाराजा उनकारा से क्षमा गोहरले आ आपन पद के फेनु से सुसज्जित करेके निहोरा कइले। बाकीर उ ना मनले आ कहले के अब हमरा के हरी गुण गावेदऽ आ भगवत्भजन करेदऽ।

1657ई.स. में ऊ स्वामी रामानन्दाचार्य के अनुयायी बनलें जे वैष्णव धर्म[4]के प्रचारक रहलें। उ चन्द्रदास नाँव के एगो संत से दीक्षा लिहले, आ फेनु विनोदानन्द के शिष्य बन गइलन। सदानन्दकरुणानिधन इनके दू गो उल्लेखनीय शिष्य रहलें।

अपना जीवनकाल में एकमा के लगे पारस मठ, भटनी के लगे सहनाम मठ जईसन कई गो मठ के स्थापना कइले, जहां हर साल उनकर आ उनकर अनुयायी सदानन्द आ शिवानन्द से लागऽत एगो मेला लागेला। माँझी में एगो गणित के स्थापनो कइले। उनकर धार्मिक बिचार मूर्तिपूजाअंधविश्वास के विरुद्ध रहे। धरनीदास तीनगो ग्रन्थन प्रेम प्रगासशब्द प्रकाश के रचना कइले बानी जवन भोजपुरी आ ब्रजभाषा बा, आ तीसीरका आलिफ रहल जे फारसी में रहल।

सर्जल साहित्य[संपादन करीं]

धरनीदास तीनगो ग्रन्थन के रचना कैले बाड़े:

  • प्रेम प्रागास
  • शब्द प्रकाश
  • आलीफ के

शब्द प्रकेश के प्रकाशन 1887 में छपरा के नासिक प्रेस से भइल। इनके रचना सभ के संग्रह धरनीदास की वाणी (हिंदी पुस्तक) भी 1911 में प्रयागराज से 47 पन्ना के पुस्तिका के रूप में प्रकाशित भइल।

संदर्भ[संपादन करीं]

  1. Sinha, Bindeshwari Prasad (2003). Kayasthas in Making of Modern Bihar. Impression Publication. p. 251.
  2. Chakraborty, S.N. (1975). Behar Herald, [1875-1975]: Centenary Number. Bengalee Association, Bihar.
  3. Bihar District Gazetteers: Saran, vol. XIV. Bihar: Superintendent, Secretariat Press. 1960.
  4. 4.0 4.1 Pankaj, Ashok K.; Pandey, Ajit K. (2018-10-26). Dalits, Subalternity and Social Change in India (अंग्रेजी में). Routledge. ISBN 978-0-429-78518-4.
  5. सिंह, दुर्गा प्रसाद (1968). भोजपुरी के कवि आ काव्य. पटना: बिहार राष्ट्रभाषा परिषद. p. 93.