कजरी: रिवीजन सभ के बीचा में अंतर
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भोजपुरी भाषा में अलग-अलग मौसम में गावल जाये वाला तरह-तरह क गीत पावल जालें जेवना में कजरी क आपन एगो अलगे महत्व हवे । कजरी गावे क मौसम [[बरसात]] क होला जब [[सावन]] की [[महीना]] में ए गीतिन के गावल जाला । कजरी के [[गीति]] गावे वाली अधिकतर नयी उमर के लड़िकी-बिटिया होखेलीं । ए गीतिन के सावन में [[झुलुआ]] खेलत घरी लड़िकी कुल आपस में दू गोल बना के गावेलीं । कजरी गा-गा के झुलुआ खेलला के ‘[[कजरी खेलल]]’ कहल जाला । एहीसे कजरी की गीतिन में [[सावन]] की महीना क हरियाली, रिमझिम [[बरखा]] के फुहार क खनक, खेल-खेलवाड़ के चंचलता, किशोरावस्था के उछाह अउरी आपस में छेड़छाड़ वाली बातचीत के सरसता झलकेला । |
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==कजरी की गीतिन के विषय == |
==कजरी की गीतिन के विषय == |
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==कजरी गायक/गायिका== |
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[[शारदा सिन्हा]] |
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01:14, 6 फरवरी 2015 तक ले भइल बदलाव
कजरी एक तरह क भोजपुरी लोकगीत हउवे जेवना के सावन की महीना में बिटिया कुल झुलुआ खेलत समय गावेलीं। कजरी गा-गा के झुलुआ खेलला के ‘कजरी खेलल’ कहल जाला ।
परिचय
भोजपुरी भाषा में अलग-अलग मौसम में गावल जाये वाला तरह-तरह क गीत पावल जालें जेवना में कजरी क आपन एगो अलगे महत्व हवे । कजरी गावे क मौसम बरसात क होला जब सावन की महीना में ए गीतिन के गावल जाला । कजरी के गीति गावे वाली अधिकतर नयी उमर के लड़िकी-बिटिया होखेलीं । ए गीतिन के सावन में झुलुआ खेलत घरी लड़िकी कुल आपस में दू गोल बना के गावेलीं । कजरी गा-गा के झुलुआ खेलला के ‘कजरी खेलल’ कहल जाला । एहीसे कजरी की गीतिन में सावन की महीना क हरियाली, रिमझिम बरखा के फुहार क खनक, खेल-खेलवाड़ के चंचलता, किशोरावस्था के उछाह अउरी आपस में छेड़छाड़ वाली बातचीत के सरसता झलकेला ।
कजरी की गीतिन के विषय
सावन की मौसम आ गावे वालिन के उमर के हिसाब से कजरी की गीतिन में अधिकतर चंचलता आ प्रेम भरल विषय मिलेला । ननद-भउजाई क छेड़छाड़, सासु-पतोहि क नोकझोंक, राधा-कृष्ण क प्रेम, श्रीरामचंद्र जी की जीवन क घटना, अउरी नई बहुरिया क अपने पति की साथै प्रेम भरल बातचीत कजरी क सबसे चलनसार विषय हवें । कजरी गावे वालिन में बहुत लड़िकी अइसनो होखेलीं जवन बियाह-गौना की बाद पहिला सावन में अपनी नइहर आइल रहेलिन जेकरा वजह से वियोग रस से भरल कजरी क गीति भी मिलेलीं । एकरी अलावा जीवन के हर बात से जुडल कजरी क गीति छिटपुट पावल जालीं । भारत की स्वतंत्रता आंदोलन की समय देशभक्ती वाली कजरी बहुत गावल जांय जिनहन के ‘सुराजी कजरी’ कहले जाला ।
उदहारण
इहाँ कजरी क एगो उदहारण दिहल जात बा जवना में ननद-भउजाई क संवाद बा :
“कइसे खेले जाइबि सावन में कजरिया
बदरिया घेरि आइल ननदी ।।
तू त चललू अकेली, केहू सँगे ना सहेली;
गुंडा घेरि लीहें तोहरी डगरिया ।।
बदरिया घेरि आइल ननदी ।।
केतने जना खइहें गोली, केतने जइहें फँसिया डोरी;
केतने जना पीसिहें जेहल में चकरिया ।।
बदरिया घेरि आइल ननदी ।।”
पाहिले भउजाई ननद से कहत बाड़ी कि ए ननद ! इ त बादर घेरि आइल बा, हम एईसना में सावन में कजरी खेले कइसे जाइबि !!
ननद कहत बाड़ी – ए भउजी तू त अकेलही कजरी खेले जात बाडू आ तोहरी संघे केहू सहेलियो नइखे । रास्ता में तोहके गुंडा रोकि लिहें तब !
ए पर भउजाई जवाब देत बाड़ी – कि अगर एइसन होई त केतने लोग गोली खाई, केतने फाँसी पर चढ़ी आ केतने लोगन के जेल में चक्की पीसे के पड़ी !