बरखा
बरखा एगो मौसम से संबंधित घटना हवे जेवना में पानी बुन्नी की रूप में आसमान से जमीन पर गिरेला। ई वर्षण क एगो रूप हवे जेवना में पानी द्रव की रूप में नीचे गिरेला। बुन्नी की आकार की हिसाब से बरखा के फँकारी, झींसी, झींसा, बुन्नी कहल जाला। जमीन आ समुन्द्र से भाप बन के उड़े वाला पानी आसमान में ऊपर जा के संघनन की कारण बहुत छोट-छोट बुन्नी आ बरफ में बदल जाला जेवना से बादर बनेला। जब आपस में मिल के ई बुन्नी बड़ होजाली तब पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण से खिंचा के जमीन की ओर गिरे लागेली जेवना के बरखा कहल जाला।
बरखा पृथ्वी की जल-चक्र क एगो बहुत महत्व वाला घटना आ हिस्सा हवे काहें से की जमीन की ऊपर मीठा पानी क सबसे ढेर पुर्ती एही बरखे से होले। खेती खातिर बरखा क महत्व बहुत बा काहें से कि सिंचनी क ई प्राकृतिक साधन हवे जेवन प्रकृति हमनी के फिरी में दिहले बा। भारत जइसन देस में खेतीबारी में पैदावार बहुत ढेर मात्रा में बरखा पर निर्भर होला।
बरखा क विश्व में वितरण सब जगह एक्के नियर ना मिलेला। कहीं बहुत कम बरखा होले त कहीं बहत ढेर। एही तरे विश्व में कुछ जगहन पर साल भर रोज बरखा होला, कुच्छ जगह गर्मी में बरखा होला, कुछ जगह जाड़ा की सीजन में, आ कुछ जगह, जइसे कि भारत में, बरसात क अलग सीजने होला। भारत की मेघालय राज्य में चेरापूँजी में विश्व क सबसे ढेर बरखा होला।
उत्पत्ती
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बरखा क प्रकार
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विश्व में
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भारत में
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इहो देखल जाय
[संपादन करीं]संदर्भ
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