चंद्रगुप्त I
चंद्रगुप्त I | |
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3सरा गुप्त सम्राट | |
Reign | ल॰ 320 – c. 335 CE |
Coronation | 320 CE |
Predecessor | घटोत्कच |
Successor | समुद्रगुप्त |
संगिनी | कुमारदेवी |
Issue | |
Dynasty | गुप्त |
Father | घटोत्कच |
गुप्त साम्राज्य 320 CE–550 CE | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||
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चंद्रगुप्त I, पहिला चंद्रगुप्त भा चंद्रगुप्त प्रथम प्राचीन भारत के गुप्त साम्राज्य के पहिला प्रमुख आ परसिद्ध राजा रहलें। उनके आसपास के राज्यन के साथ गुप्त बंस के संबंध घनिष्ठ बनावे बदे जानल जाला। इनकर बियाह लिच्छवि राजकुमारी से भइल जे साइत नेपाल के रहली आ संभवतः गुप्त लोग वैश्य वर्ण के रहल आ एह तरीका से क्षत्री कुल में बियाह से इनहन लोग के परतिष्ठा में बढ़ती भइल।[1]
चन्द्रगुप्त I, गुप्त साम्राज्य के संस्थापक श्री गुप्त के पोता आ घटोत्कच के लइका रहलें आ एह तरीका से श्रीगुप्त आ घटोत्कच के बाद एह बंस के तीसरा राजा रहलें। इनके राज के सुरुआत 319-320 ई से भइल आ एह उपलक्ष में ई नया संवत चलवलें जेकरा के गुप्त संवत कहल जाला आ बाद के कई अभिलेख सभ में एकर जिकिर मिले ला।[1] इनका बाद इनके लइका समुद्रगुप्त गद्दी पर बइठलें।
बिबरन
[संपादन करीं]चंद्रगुप्त प्रथम, गुप्त साम्राज्य के संस्थापक श्रीगुप्त के पोता रहलें आ एह बंस के दूसरा राजा घटोत्कच इनकर बाबूजी रहलें। अपना बाबा आ बाबूजी के बाद चंद्रगुप्त 319-320 ई में राजगद्दी पर बइठलें आ "महाराजाधिराज" के पदवी धारण कइलें। हालाँकि ई पदवी इनका से पहिले, कुषाण बंस के राजा लोग भी इस्तेमाल करे।[2]
इनकार बियाह लिच्छवि राजकुमारी कुमारदेवी से भइल आ एह तरीका से इनके लिच्छवी लोग आ वैशाली राज्य पर नियंत्रण हो गइल।[3] कौसांबी आ कोसल के जीत के अपना राज में मिलवलें आ आपन राजधानी पाटलिपुत्र में स्थापित कइलें।[3]
चंद्रगुप्त, लगभग 335 ईस्वी में अपना बेटा समुद्रगुप्त के आपन उत्तराधिकारी नियुक्त कइलें।[2] हालाँकि, आधुनिक जमाना के इतिहास लेखक लोग के मत अनुसार राजगद्दी के ई बदलाव अतना आराम से ना भइल[2] आ समुद्रगुप्त आ चन्द्रगुप्त के बिचा में एगो अउरी राजा भइलें जिनके नाँव कचगुप्त रहल आ ऊ साइद चंद्रगुप्त के भाई रहलें। एह बिबाद के परमान के रूप में कचगुप्त के नाँव वाला सिक्का सभ के महत्व वाला मानल जाला जे सुरुआती गुप्त काल के सिक्का भंडार सभ में बहुतायत से मिले लें। इलाहाबाद के अशोक स्तम्भ पर खोदल प्रयाग प्रशस्ति में, जहाँ समुद्रगुप्त के बिजय अभियान के बिस्तार से बिबरन लिखल गइल बा, एह बात के कुछ संकेत मिले ला की समुद्रगुप्त के राजगद्दी खाती संघर्ष करे के परल।[4] कुछ इतिहासकार लोग कौमुदीमहोत्सवम् नाँव के नाटक पर आधारित बिचार बतावे ला की एह में बर्णित सीन जेह में राजा अपना मरण के समय अपना बेटा के उत्तराधिकार सउँपें ले आ हारल राज सभ के दोबारा जीते खाती कहे लें, चंद्रगुप्त द्वारा समुद्रगुप्त के दिहल आदेस के चिन्हित करे ला। हालाँकि बाद के इतिहासकार लोग एह मत के बहुत महत्व ना देला आ कौमुदीमहोत्सवम् में बर्णित घटना के इतिहासी महत्व के ना माने ला।[4]
गैलरी
[संपादन करीं]-
चंद्रगुप्त I के समय के दीनार
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कुमारदेवी आ चंद्रगुप्त, समुद्रगुप्त के काल के सिक्का पर देखावल
इहो देखल जाय
[संपादन करीं]संदर्भ
[संपादन करीं]- ↑ 1.0 1.1 शर्मा 2009, p. 236.
- ↑ 2.0 2.1 2.2 रोमिला थापर (2008). भारत का इतिहास (1000 E.P-1526 E). राजकमल प्रकाशन प्रा॰ लि॰. pp. 124–. ISBN 978-81-267-0568-9.
- ↑ 3.0 3.1 दिलीप कुमार लाल. बृहत्तर भारत का निर्माता चंद्रगुप्त मौर्य. pp. 99–. ISBN 978-93-5048-583-5.
- ↑ 4.0 4.1 Ashvini Agrawal (1989). Rise and Fall of the Imperial Guptas. Motilal Banarsidass Publ. pp. 104–. ISBN 978-81-208-0592-7.
संदर्भ स्रोत
[संपादन करीं]- शर्मा, रामशरण (2003) [1952], प्रारंभिक भारत का परिचय, ओरियंट ब्लैकस्वान, ISBN 81-208-0436-8
Regnal titles | ||
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पहिले घटोत्कच |
गुप्त सम्राट 320–335 |
बाद में समुद्रगुप्त |
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