उपसर्ग
संस्कृत व्याकरण में उपसर्ग कुल बीस (चाहे बाइस) ठे प्रीपोजीशनल पार्टिकल हवें जे क्रिया चाहे क्रियार्थक संज्ञा (एक्शन नाउन) के प्रीफ़िक्स के रूप में पहिले जुड़[1] के नया शब्द बनावे लें। वैदिक संस्कृत में एह प्रीपोजीशन सभ के क्रिया शब्द से बिलग कइल जा सकत रहल; शास्त्रीय संस्कृत में इनहन के पहिले जोड़ के लिखल अनिवार्य होला।
लिस्ट
[संपादन करीं]महर्षि पाणिनि के अष्टाध्यायी (1.4.58-59)[2] में बीस गो अइसन उपसर्ग (प्रीफ़िक्स) चिन्हित कइल गइल बाड़ें आ इनहन के गणपाठ में गिनावल गइल बाटे:[3]
- प्र — "आगे"
- परा — "से परे, दूर"
- अप — "दूर"
- सम् / सम — "संघे, साथे"
- अनु
- अव
- निस् / निर्
- दुस् / दुर्
- वि
- आङ् (आ-)
- नि
- अधि
- अपि
- अति
- सु
- उद्
- अभि
- परि
- प्रति
- उप
मूल रूप निः आ दुः के संधि के नियम अनुसार जुड़ाव में दू गो रूप भेद हो जालें जवना से ई निस्/निर् आ दुस्/दुर् बन जालें जेकरा चलते इनहन के गिनती 20 से 22 हो जाला।
इनहना के एगो श्लोक के रूप में ब्यक्त कइल जाला:
प्रपरापसमन्ववनिर्दुरभिव्यधिसूदतिनिप्रतिपर्यपयः ।
उप आ ङिति विंशतिरेष सखे उपसर्गगणः कथितः कविना ॥
फुटनोट
[संपादन करीं]स्रोत ग्रंथ
[संपादन करीं]- Monier-Williams, M., A Sanskrit English Dictionary, (reprint) New Delhi, Motilal Banarsidass 2005 ISBN 81-208-3105-5
- Katre, Sumitra M., Aṣṭādhyāyī of Pānini, New Delhi, Motilal Banarsidass 1989
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