भारवि
भारवि | |
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पेशा | कवी |
राष्ट्रियता | भारतीय |
समय | c. 6वीं-सदी ईसवी |
बिधा | संस्कृत काब्य, महाकाब्य |
बिसय | शिव-अर्जुन के जुद्ध |
प्रमुख रचना | किरातार्जुनीयम् |
भारवि (6वीं-सदी ईस्वी) संस्कृत भाषा के एगो भारतीय कवी रहलें। इनकर परसिद्ध रचना किरातार्जुनीयम् नाँव के महाकाब्य हवे। एह रचना में, महाभारत के एगो पर्व (अध्याय) के कथा के आधार बना के अठारह सर्ग में किरात-रूप-धारी शिव आ अर्जुन के बीचा में बिबाद, जुद्ध आ बातचीत के बर्णन कइल गइल बा। ई संस्कृत साहित्य के ऊँच श्रेणी के रचना सभ में से एक गिनल जाला।
मानल जाला कि भारवि इनके असली नाँव ना बलुक कबितई खातिर धारण कइल उपनाँव रहल। भारवि के मतलब होला रवि यानी सुरुज के दमक। कुछ लोग इनके मूल नाँव दामोदार बतावे ला हालाँकि, ई बात बहुत प्रामाणिक होखे अइसना में संदेह बा। इनके जनम अस्थान दक्खिन भारत में कहीं रहल अइसन अनुमान लगावल जाला।
कम शब्द में गम्हीर बात कहे खातिर इनके काब्य के बिसेस तारीफी भइल बा आ संस्कृत में भारवेरर्थगौरवम् नाँव के उक्ति एही कारण चलनसार हवे। अपना समय के कबितई के परंपरा अनुसार ई अपने काब्य के एगो सर्ग में बिबिध किसिम के चमत्कारी प्रयोग भी कइले बाने जइसे कि एकाक्षरी श्लोक (पूरा श्लोक में एकही अच्छर) वगैरह। इनके काब्य के सूक्ति सभ बिबिध जगह पर कोट कइल जालीं।
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[संपादन करीं]संदर्भ
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