माहेश्वर सूत्र
माहेश्वर सूत्र संस्कृत व्याकरण में ऋषि पाणिनि के बतावल चउदह गो सूत्र हवें[1][2] जिनहन में संस्कृत के अक्षर (फोनेम) सभ के खास तरीका से ब्यवस्थित कइ के रखल गइल हवे। इनहन के मकसद प्रत्याहार के रचना हवे जेवना से कई अक्षर सभ के समूह के भी छोट नाँव से बोलावल जा सके।
हर सूत्र में अंतिम अक्षर के हलंत रूप में (् के चीन्हा के साथे) मानल-लिखल जाला आ एह अंतिम अक्षरन के इत् नाँव से जानल जाला।[नोट 1] सभसे छोट सूत्र छठवाँ आ चउदहवाँ हवें जिनहना में इत् के अलावा खाली एक ठो अउरी अक्षर बाटे जबकि सभसे लमहर इगारहवाँ सूत्र हवे जेह में इत् के अलावा आठ गो अक्षर बाड़ें।
नाँव आ उत्पत्ती
[संपादन करीं]इनहन के शिव सूत्र के नाँव से भी जानल जाला। माहेश्वर भा शिव सूत्र के नाँव से चलन के पाछे कथा ई हवे कि ई हिंदू देवता भगवान शिव के डमरू बजावे से निकलल आवाज हवें।[3] एह कथा खाती एगो श्लोक कोट कइल जाला:
नृत्तावसाने नटराजराजो ननाद ढक्कां नवपञ्चवारम्।
उद्धर्तुकामः सनकादिसिद्धान् एतद्विमर्शे शिवसूत्रजालम् ॥
पाणिनि इनका सभ के अपना अष्टाध्यायी में दिहलें आ इनहन के आधार बना के आपन ब्याकरण के रचना कइलें।
इनहन के अक्षर समाम्नाय भा वर्ण समाम्नाय के नाँव से भी जानल जाला।[4] कुछ लोग इनहन के खुद पाणिनि के रचना माने ला जबकि कुछ लोग इहो माने ला कि ई पाणिनि से पहिले भी मौजूद रहल हो सके लें।
सूत्र
[संपादन करीं]1. अ इ उ ण्।
2. ऋ ऌ क्।
3. ए ओ ङ्।
4. ऐ औ च्।
5. ह य व र ट्।
6. लँ ण्।
7. ञ म ङ ण न म्।
8. झ भ ञ्।
9. घ ढ ध ष्।
10. ज ब ग ड द श्।
11. ख फ छ ठ थ च ट त व्।
12. क प य्।
13. श ष स र्।
14. ह ल्।
"इत्" संज्ञा
[संपादन करीं]संस्कृत व्याकरण में संज्ञा के माने "नाँव" होला। ऊपर बतावल 14 सूत्र सभ में, हर एक में जे अंतिम अक्षर आवे लें उनहन के "इत्" संज्ञा होला (मने कि इनहन के नाँव "इत्" हवे)।[5] ई बिधान भा परिभाषा अष्टाध्यायी के पहिला पाद के तिसरा भाग के तिसरा सूत्र में बतावल गइल बा:
- हलन्त्यम् (1।3।3)।
लघुकौमुदी में एह सूत्र के वृत्ति में लिखल बा कि - "उपदेशेऽन्त्यं हलित्त् स्यात्त् । उपदेश आद्योच्चारणम् ।" मने कि, उपदेश के अंतिम हल् के इत् संज्ञा होला; उपदेश के मतलब हवे आद्य उच्चारण।[5]
इहाँ हल् के मतलब हवे सगरी व्यंजन अक्षर। हल् प्रत्याहार हवे जेकर वर्णन अगिला खंड में बा। आद्य उच्चारण के दू गो अरथ कइल जाला आद्य यानी प्राचीन लोगन के उच्चारण, या फिर धातु वगैरह के पुराना उच्चारण।[5]
इत् संज्ञा से संबधित सगरी सूत्र सभ अष्टाध्यायी में एकही जगह बाने। सूत्र 1|3|2 से ले के सूत्र 1।3।9 तक ले।[6]
प्रत्याहार
[संपादन करीं]पाणिनि के बतावल एह 14 माहेश्वर सूत्र सभ के काम प्रत्याहार के रचना हवे। प्रत्याहार एक तरह से संछेप नाँव हवें। मने कि कई अक्षर सभ के एक्के बेर में गिनावे खाती कोड के रूप में दिहल शब्द हवें। अष्टाध्यायी में इनहन के बिधान नीचे दिहल सूत्र से होला:
- आदिरन्त्येनसहेता (1।1।70)
लघुकौमुदी में एह सूत्र के वृत्ति बा - अन्त्येनेता सहित अदिर्मध्यगानां स्वस्य च संज्ञा स्यात् । अंतमे आवे वाला इत् के साथ सुरुआती अक्षर, अपना आ बीचा में आवे वाला सगरी अक्षर सभ के संज्ञा (नाँव) होला। मतलब कि एह प्रत्याहार सभ के रचना माहेश्वर सूत्र के कौनों अक्षर आ इत् के जोड़ के होला आ ओह खास अक्षर आ इत् के बीचा में जेतना अक्षर आवे लें उनहन में से इत् सभ के लोप करा के बाकी बचल अक्षर सभ के ओही नाँव बूझल जाला।
उदाहरण खाती अक् प्रत्याहार लिहल जाव तब (ऊपर) सूत्र में देखल जा सके ला कि 1. अ इ उ ण् आ 2. ऋ ऌ क् में दिहल अ इ उ ऋ ऌ के गिनल जाई आ ण् आ खुद क् के लोप हो जाई। एह तरीका से प्रत्याहार अक् = अ इ उ ऋ ऌ। मने कि पाणिनि के व्याकरण में जहाँ अक् कहल जाय ओकर मतलब कि एकरा से अ इ उ ऋ ऌ के बोध होखी। अक् एह तरीका से अ इ उ ऋ ऌ सभ के कोड नाँव हवे।
एगो अनुमान के अनुसार एह तरीका से कुल 281 प्रत्याहार सभ के रचना कइल जा सके ला। हालाँकि, पाणिनि के व्याकरण में 42 गो प्रत्याहार (कुछ लोग रँ प्रत्याहार के ना माने ला आ 41 संख्या बतावे ला) के इस्तेमाल भइल बा आ दू गो प्रत्याहार बाद के व्याकरणाचार्य लोग के बनावल हवें।[7]
प्रत्याहार के उदाहरण के रूप में स्वर संधि के दू गो सूत्र देखल जा सके लें:
- अकः सवर्णे दीर्घः के अक् में अ इ उ ऋ ऌ सभ गिनल जाला। सूत्र के अर्थ हवे की एह सभ स्वर सभ के बाद इनहने के सवर्ण स्वर आवे तब इनहन के दीर्घ रूप हो जाला।
- इको यणचि में तीन गो प्रत्याहार बाने, इक्= इ उ ऋ ऌ यण्= य व र ल आ अच् = अ इ उ ऋ ऌ ए ओ ऐ औ। सूत्र के अर्थ होला कि इक के बाद कौनों स्वर आवे तब जुड़ के यण् हो जाला। मने कि इ उ ऋ ऌ के बाद स्वर आवे पर इनहन के जगह य व र ल में से (उचित, स्थानेऽन्तरतमः सूत्र अनुसार) कौनों हो जाला।
सूत्र बिबरन
[संपादन करीं]पाणिनि के बतावल ई 14 सूत्र सभ उनके व्याकरण ग्रंथ अष्टाध्यायी के बिल्कुले सुरुआत में दिहल गइल हवें। इनहन में संस्कृत के अक्षर सभ (मूल फोनेम) सभ के खास तरीका से रखल गइल हवे। ऊपर बतावल सूत्र सभ में कुछ खास क्रम वाली चीज देखल जा सके ला:[8][9]
- पहिला से चौथा सूत्र तक सगरी स्वर अक्षर गिनावल गइल हवें। प्रत्याहार के रूप में इनहन के अच् कहल जाला। मने कि "अ इ उ ऋ ऌ ए ओ ऐ औ"।
- पहिला सूत्र में तीन ठो स्वर हवें। इनहन के मूल स्वर भा सिंपल वावेल समझल जा सके ला। अण् प्रत्याहार द्वारा इनहन के पहिचानल जाला। मने कि "अ इ उ"।
- संस्कृत वर्णमाला के वर्ग सभ के पाँचवाँ अक्षर (पंचमाक्षर) सभ "ञ म ङ ण न म्" यानी कि सातवाँ सूत्र में हवें।
- "झ भ ञ्" आ "घ ढ ध ष्", मने कि आठवाँ आ नउवाँ सूत्र में वर्ग के चौथा अक्षर हवें।
- "ज ब ग ड द श्", यानी दसवाँ सूत्र में, वर्ग के तिसरा अक्षर हवें।
- इगारहवाँ सूत्र में सुरुआती आधा "ख फ छ ठ थ" वर्ग के दुसरा अक्षर हवें। एह सूत्र के बाकी अक्षर आ बारहवाँ सूत्र के अक्षर वर्ग के पहिला अक्षर हवें - "च ट त व्" आ "क प य्"।
- पाँचवाँ आ छठवाँ सूत्र में ह के छोड़ दिहल जाय तब अन्तस्थ अक्षर सभ हवें - "य व र ट्" आ "लँ ण्"।
- तेरहवाँ आ चउदहवाँ सूत्र में ऊष्म वर्ण हवें - "श ष स र्" आ "ह ल्"।
फुटनोट आ संदर्भ
[संपादन करीं]नोट
[संपादन करीं]संदर्भ
[संपादन करीं]- ↑ 1.0 1.1 स्वामी धरानन्द शास्त्री, p. 4.
- ↑ भीमसेन शास्त्री, p. 2.
- ↑ सीताराम चतुर्वेदी 1969, p. 1.
- ↑ प्रेम सुमन जैन 1977.
- ↑ 5.0 5.1 5.2 भीमसेन शास्त्री, p. 5.
- ↑ भीमसेन शास्त्री, p. xii.
- ↑ भीमसेन शास्त्री, p. 13.
- ↑ भीमसेन शास्त्री, p. 11.
- ↑ अश्विनी कुमार अग्रवाल, p. 14.
स्रोत ग्रंथ
[संपादन करीं]- स्वामी धरानन्द शास्त्री. लघुसिद्धान्तकौमुदी-वरदराज विरचित (हिंदी में). मोतीलाल बनारसीदास प्रकाशन. pp. 17–. ISBN 978-81-208-2214-6. Retrieved 11 अगस्त 2019.
- भीमसेन शास्त्री (2000). लाघुसिद्धान्तकौमुदी - भैमी व्याख्या (हिंदी में) (4था ed.). दिल्ली: भैमी प्रकाशन.
- सीताराम चतुर्वेदी (1969). वाग्विज्ञान: भाषाशास्त्र (हिंदी में). वाराणसी: चौखंभा विद्याभवन.
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(help) - दुलाहराज (मुनि); चंगालाल शास्त्री; प्रेम सुमन जैन (1977). संस्कृत प्राकृत जैन व्याकरण और कोश की परंपरा. श्री कालूगणी शताब्दी समारोह समीति.
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(help) - अश्विनी कुमार अग्रवाल. Ashtadhyayi of Panini Complete. Lulu.com. ISBN 978-1-387-90580-5.
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