मछरी मारे के नौकायान

विकिपीडिया से
उत्तर सागर में काम पर लागल एगो क्रैब बोट (खेखड़ा पकड़े वाली नाइ)
अंजार्ले गाँव, महाराष्ट्र में एगो ज्वारीय क्रीक में खड़ा मछरी मारे वाला नाइ सभ

मछरी मारे वाला नौकायान (अंग्रेजी: fishing vessel; फिशिंग वैसल ) कौनों नाइ भा जहाज होखे लें जिनहन के इस्तेमाल समुंद्र, झील भा नदी में मछरी पकड़े खातिर होला। कई गो अलग अलग तरह के अइसन नौकायान सभ के इस्तेमाल व्यावसायिक, कारीगरी के काम खाती आ मनोरंजन खाती मछरी पकड़े में होखे ला।

मनोरंजन खातिर मछरी मारे वाली नौकायान सभ के गिनती के अनुमान लगावल बहुते मुश्किल बा। इनहन के साइज छोट डेंगी से ले के बड़हन चार्टर क्रूजर तक ले हो सके ला आ ब्यापारिक मछरी पकड़े वाला जहाज सभ के बिपरीत, अक्सरहा ई खाली मछरिये मारे खातिर बनल नाहियो हो सके लें।

1950 के दशक से पहिले मछरी मारे वाली नौकायान सभ के कौनों किसिम के मानकीकरण बहुत कम रहे। बंदरगाह वाला आ नौकायन वाला एह जलयान के बीच डिजाइन अलग-अलग हो सके ला। परंपरागत रूप से नाइ लकड़ी से बनल होखें, बाकी अब नया जमाना में लकड़ी के इस्तेमाल अक्सर ना होला काहें से कि रखरखाव के लागत बेसी होला आ स्थायित्व कम होला। फाइबरग्लास के इस्तेमाल 25 मीटर (100 टन) तक ले के छोट मछरी पकड़े वाला जहाज सभ में तेजी से बढ़ल बाटे जबकि स्टील के इस्तेमाल आमतौर पर 25 मीटर से बेसी लमहर जहाज सभ में होखे ला।

इतिहास[संपादन करीं]

पुर्तगाली मुलेटा आ ब्रिटिश डॉगर सुरुआती किसिम के नौकायन ट्रॉलर रहलें जे 17वीं सदी से पहिले आ एकरे बाद के इस्तेमाल में रहलें, बाकी आधुनिक मछरी पकड़े वाला ट्रॉलर के बिकास 19वीं सदी में भइल हवे।

किसिम[संपादन करीं]

  • ट्रॉलर – एक ठो भा बेसी ट्रोलिंग लाइन के खींच के मछरी पकड़े लें। ट्रोलिंग लाइन मछरी पकड़े के लाइन होखे लीं जिनहन जेह में प्राकृतिक भा कृत्रिम चारा वाला हुक होलें जिनहन के पानी के सतह के लगे भा कौनों खास गहिराई पर कौनों जहाज के पीछे-पीछे चलावल जाला। लाइन सभ के अलगा रखे खातिर आउटरिगर के इस्तेमाल से एक साथ कई गो लाइन सभ के खींचल जा सके ला।
  • जिग्गर – जिगर दू तरह के होलें: बिसेस स्क्वीड जिगर जे ज्यादातर दक्खिनी गोलार्ध में काम करे लें आ उत्तरी गोलार्ध में जिगिंग तकनीक के इस्तेमाल करे वाला छोट जहाज मुख्य रूप से कॉड पकड़े खातिर इस्तेमाल होखे लें।[1]

संदर्भ[संपादन करीं]

  1. "Fishing Vessel type: Jigger vessels". FAO.