अबीर

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(गुलाल से अनुप्रेषित)
अबीर
रंगीन अबीर के बोरा
होली खाती बजार में सजल अबीर
Typeरंगीन पावडर
होली मनावत लोग
होली में अबीर उड़ावत लोग

अबीर भा गुलाल, एक तरह के सूखल रंगीन पावडर होला जे हिंदू लोग के पूजा पाठ में देवता लोग के चढ़ावे आ होली के तिहुआर में एक दूसरा पर रंग लगावे के कामे आवे ला। परंपरागत रूप से ई प्राकृतिक चीज सभ से बनावल जाय। वर्तमान में एह में कई चीज के मिलावट से एकरा के तइयार कइल जाला। बजार में हर्बल अबीर आ सुगंधित अबीर भी मिले ला।

नाँव[संपादन करीं]

कुछ बिद्वान लोग के अनुसार अबीर शब्द के अरथ अबरक (अभ्रक) हवे जेह में गुलाल मिला के होली खेलल जाला।[1][2]

साहित्य में[संपादन करीं]

रामचरितमानस में अबीर शब्द एक बेर आइल बतावल जाला।[नोट 1] हिंदी के कबी पद्माकर के एगो बिबरन में गोपी के ऊपर एगो लइका अबीर फेंक देला जे आँखी में पर जाला, सखी मेहनत क के आँखि में परल अबीर निकाले ले आ पूछे पर गोपी कहे ले कि अबीर त निकल गइल बाकी ऊ अहीर के लइका आँखी में बस गइल बा जे निकलत ना बा।[नोट 2] भोजपुरी के फगुआ के गीतन में अबीर उड़े के उदाहरण मिले ला।[नोट 3]

नोट[संपादन करीं]

  1. रामचरित मानस में - "अगर, धूप बहु जनु अँधिआरी। उड़े अबीर मनहुँ अरुनारी।।" (बालकांड 165/5)[1]
  2. "ए री मेरी बीर जैसे-तैसे इन आँखिन सों; कढ़िगो अबीर पै अहीर को कढ़ै नहीं।" - पद्माकर[3]
  3. "बंगला पे उड़े ला अबीर हो लाला..." - बाबू कुँवर सिंह के बीरता के बरनन करे वाला एगो परंपरागत फगुवा से।[4]

संदर्भ[संपादन करीं]

  1. 1.0 1.1 Ambāprasāda Sumana (1973). Rāmacaritamānasa: vāgvaibhava: 'Rāmacaritamānasa' kā śabdaśāstrīya evaṃ kāvyaśāstrīya adhyana. Vijñāna Bhāratī.
  2. Śakuntalā Pāñcāla (1990). Bihārī kī kāvyabhāshā. Sāhitya Ratnālaya.
  3. Hazari Prasad Dwivedi (September 2003). Vichar Prawah. Rajkamal Prakashan Pvt Ltd. pp. 167–. ISBN 978-81-267-0581-8.
  4. Sunil Kumar Pathak. Chhavi Aur Chhap. pp. 175–. ISBN 978-93-83110-49-0.