हिंदू कला
Appearance
हिंदू कला में हिंदू धर्म से सांस्कृतिक रूप से जुड़ल कलात्मक परंपरा आ शैली के शामिल कइल जाला।
परिचय
[संपादन करीं]हिंदू धर्म, अपना 1 अरब अनुयायिन की साथ, दुनिया क लगभग 15% आबादी बनेला और इ एगो एइसन संस्कृति ह जवन कि कला से प्रभावित जीवन की कई गो अलग-अलग पहलू से भरल बा।[1] कुल 64 गो पारंपरिक कला बाड़ी स जवन की उत्कृष्ट संगीत से शुरू होके आभूषणन की पहनावा से लेके ओकरी विभिन्न साज-सज्जा की तरीकन ले जाला। चूँकि, धर्म आ संस्कृति के हिंदू धर्म से अलग नाहीं क सकल जा सके ला, एही से एमें पुनरावर्तीत प्रतीक जइसे कि देवता अउरी उन्हन लोग क कई गो अवतार, कमल क फूल, अतिरिक्त अंग आ इहाँ तक ले कि पारंपरिक कला क दृश्य, अलग अलग मूर्तियन, चित्र, संगीत अउरी नृत्य देखे के मिलेला।
64 गो पारंपरिक कला
[संपादन करीं]- गायन
- वाद्य संगीत - 20 वीं शताब्दी से पहिले संगीत सीखे खातिर घराना में जन्म लिहले की शर्त की चलते हिंदू संस्कृति में संगीत सीखल एगो मुश्किल काम रहे। हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत सीखले क इच्छा रखे वालन खातिर 1920 की दशक की आरंभ से कुछ आसानी भइल। सामान्य तौर प हर कलाकारन की टुकड़ी में एगो हार्मोनियम शामिल रहे (जवन की पश्चिमी देश भारत में ले आइल रह न स), बांसुरी, वीणा, सितार, स्वरमंडल और एगो तबला भी एकर हिस्सा रहे। कई गीतन में धर्मशास्त्र से संबंधित विषय, भगवान क प्रशंसा, भगवान क विभिन्न अवतार जैसन मजबूत विषय और यहाँ तक की धरती की निर्माण क कथा भी देखे के मिलेला। चूंकि वाद्य संगीत एगो प्रदर्शन कला ह, एही वजह से एके नाट्य शास्त्र की ग्रंथन में लिखल सख्त दिशा निर्देशन क पालन करे के चाहीं।[2]
- नृत्य
- चित्रकारी (भारतीय किसिम) - विभिन्न प्रकार क लोक चित्र भारतीय संस्कृति खातिर गर्व क बात ह जवन की भारत की सुंदरता, परंपरा और विरासत के दर्शावेला। मधुबनी, राजस्थानी, बटिक-आर्ट, पट्टचित्र, गोंड, मंडला, वारली -आदिवासी कला, पिथोरा, बंगाली, निर्मल, मैसूर, तंजौर चित्रकारी आदि जैसन कईगो पारंपरिक चित्रकला बाड़ी स, जवन प्रेम, सर्वशक्तिमान, सौंदर्य, सच्चाई क अभिव्यक्ति ह और इ परंपरा और कला की तौर प भारत की हर क्षेत्र में देखे के मिलेला।
- माथा क सजावट
- फर्श प सजावटी फूल और अनाज से डिजाइन
- घर आ मंदिर में फूल क सजावट
- व्यक्तिगत साज-सज्जा
- मोज़ेक टाइलिंग
- बेडरूम क साज-सज्जा
- पानी से संगीत क व्यवस्था
- पानी क अलग अलग तरह क फव्वारा आ छिड़काव
- गुप्त मंत्र
- फूलन क हार बनवले क कला
- सिर श्रृंगार
- ड्रेसिंग
- ड्रेपरी समय बितले की साथ ड्रेपरी (पर्दा से सजावट क कला) में प्रगति भइल बा। एक समयबिंदु प पुरुष और महिला दुनू धोती पहिने स लेकिन 14 वीं शताब्दी की आसपास समय बदल गईं और औरतीन क फैशन अधिक जटिल बन गइल और ए तरह से साड़ी अस्तित्व में आइल। हर ड्रेपरी पहिने वाला की निजी पसंद, व्यवसाय और सामाजिक स्थिति की हिसाब से अलग-अलग रहे। एकरी खातिर जवन कपड़ा क चुनाव होला उ सिंथेटिक कपड़ा से लेके रेशम तक कौनों हो सकेला। कपड़ा क चुनाव ए बात प निर्भर करेला कि पहिने वाला कौने मौका खातिर कपड़ा क चुनाव कर ता।[3]
संदर्भ
[संपादन करीं]- ↑ "वैश्विक धार्मिक लैंडस्केप - हिंदू धर्म". pewforum.com.
- ↑ "हिंदू संगीत का जादू". hinduismtoday.com.
- ↑ "कपड़ा Begets फैशन". hinduismtoday.com.