राग
भारतीय शास्त्रीय संगीत |
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कांसेप्ट |
भारतीय शास्त्रीय संगीत में राग (चाहे रागिनी) सभ, निश्चित सुर सभ आ बिसेस चलन (उतार-चढ़ाव) के तरीका के आधार पर परिभाषित कइल मधुर ढाँचा (फ्रेमवर्क) हवें। एह ढाँचा सभ के भीतर रह के, इनहन के सुर आ चलन के आधार बना के गायक चाहे साज बजावे वाला लोग आपन भाव संगीत द्वारा प्रगट करे लें। पच्छिमी संगीत में अइसन कौनों चीज ना मिले ला जे सटीक रूप से भारतीय राग के कांसेप्ट के एकदम समकक्ष होखे बाकी कुछ हद तक एकर तुलना मेलोडिक मोड से कइल जा सके ला।
"राग" शब्द के इस्तेमाल पुराना समय के बैदिको साहित्य में मिले ला बाकी संगीत में एकर पहिला प्रामाणिक जिकिर मतंग मुनि के ग्रंथ बृहद्देशी में मिले ला। मध्यकाल में राग के संबंध में भरत, सोमेश्वर, कल्लिनाथ आ हनुमत् नियर बिद्वान लोग के द्वारा बिचार ब्यक्त कइल गइल आ आपन-आपन मत अस्थापित कइल गइल।[1] एही काल में बर्गीकरण के सुरुआत भइल आ इनहन के मरदाना आ जनाना मान के राग आ उनहन के रागिनी के कल्पना कइल गइल। बाद में, एही मध्यकाल में एह राग-रागिनी सभ के पुरुष आ औरत रूप में "ध्यान" कइ के लच्छन के बिबरन दिहल गइल आ चित्रकार लोग एह राग रागिनी सभ के चित्रो बनावल जेह में राग-रागिनी के सोभाव के हिसाब से उनहन के मरद आ औरत के रूप में चित्र बना के देखावल गइल।
राग सभ पर देसकाल के परभाव पड़ल आ दक्खिन भारतीय (कर्नाटक संगीत) आ उत्तर भारतीय (हिंदुस्तानी संगीत) के राग सभ में कुछ अंतर देखलाई पड़े ला। हिंदुस्तानी संगीत में राग सभ के बिबेचना आ बर्गीकरण के सिस्टम विष्णु नारायण भातखंडे द्वारा कइल गइल जे वर्तमान में चलन में बाटे। एह सिस्टम में राग सभ के उत्पत्ती ठाट (चाहे थाट) से मानल जाला, सभ रागन के निश्चित सुर (स्वर) होलें आ कुछ अउरी बिसेस नियम होलें। सुर के गिनतियो के हिसाब से इनहना के बर्गीकरण कइल जाला, जइसे कि औढव-औढव राग या फिन संपूर्ण-संपूर्ण राग।
राग सभ के बर्गीकरण में पुराना समय में बरिस भर के मौसम आनुसार अलग-अलग रितु (सीजन) के हिसाब से भी कइल जाला आ चउबीस घंटा के दिन-रात के अलग-अलग टाइमो के हिसाब से इनहन के बाँटल जाला जे इनहन के गावे-बजावे के समय मानल जालें। एकरे अलावा इहो बिधान मिले ला कि कवना राग में कवने रस के चीज गावल-बजावल जा सके ले।
भारत के दुनों किसिम के शास्त्रीय संगीत के परंपरा में, हिंदुस्तानी (उत्तर भारतीय) आ कर्नाटक (दक्खिन भारतीय) संगीत में, राग के कांसेप्ट चलन में हवे।[2] एकरे अलावा राग के कांसेप्ट सिख धर्म के सभसे प्रमुख आ प्राथमिक ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहब में मिले ला[3] जहाँ अलग-अलग भजन सभ के गावे खातिर राग निश्चित कइल गइल बाड़ें। एही तरीका से, सूफ़ी मत वाल गायन के इस्टाइल कव्वाली में राग के इस्तेमाल होला।[4] भारतीय फिलिम संगीत आ ग़ज़ल गायकी में राग सभ के इस्तेमाल होखे ला।[5]
फुटनोट
[संपादन करीं]- ↑ U.G.C.-NET/J.R.F./SET Sangeet (Paper-II). Upkar Prakashan. pp. 146–.
- ↑ Fabian, Renee Timmers & Emery Schubert 2014, pp. 173–174.
- ↑ Kapoor 2005, pp. 46–52.
- ↑ Salhi 2013, pp. 183–84.
- ↑ Nettl et al. 1998, pp. 107–108.
स्रोत ग्रंथ
[संपादन करीं]- Fabian, Dorottya; Renee Timmers; Emery Schubert (2014). Expressiveness in music performance: Empirical approaches across styles and cultures. Oxford University Press. ISBN 978-0-19-163456-7.
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(help) - Kapoor, Sukhbir S. (2005). Guru Granth Sahib – An Advance Study. Hemkunt Press. ISBN 978-81-7010-317-2.
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(help) - Nettl, Bruno; Ruth M. Stone; James Porter; Timothy Rice (1998). The Garland Encyclopedia of World Music: South Asia: The Indian Subcontinent. New York and London: Routledge. ISBN 978-0-8240-4946-1.
- Salhi, Kamal (2013). Music, Culture and Identity in the Muslim World: Performance, Politics and Piety. Routledge. ISBN 978-1-317-96310-3.
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बाहरी कड़ी
[संपादन करीं]विकिमीडिया कॉमंस पर संबंधित मीडिया राग पर मौजूद बा। |
- A step-by-step introduction to the concept of rāga for beginners
- Rajan Parrikar Music Archive – detailed analyses of rāgas backed by rare audio recordings
- Comprehensive reference on rāgas
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