बुझनी

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बुझनी चाहे बुझउवल (अंग्रेजी: Riddle) अइसन कहनाम चाहे वाक्य होला जेकर कौनों छिपल अरथ होला चाहे दुअर्थी बात होला जेकरा के बूझे के दिमागी कसरत के रूप में सुनावल जाला आ बूझे के चुनौती दिहल जाला। ई दिमागी कसरत (पजल) सभ के एगो परकार हवे।

बुझउवल सभ दुनियाँ के हर कोना आ हर भाषा में पावल जालीं। आर्चर टेलर के कहनाम बा कि "हमनी के संभवतः ई कहल जा सकीलें कि ई एगो युनिवर्सल कला हवे"।[1] इनहन के कुछ बिसयो अइसन बाड़ें जे लगभग सभ जगह एक्के नियर पावल जाए वाला बाड़ें।

भारतीय संदर्भ में, सभसे पुरान साहित्य ऋग्वेद के कुछ मन्त्र सभ के मानल जाला की ऊ बुझनी के रूप में कहल गइल रहलें।[2][3] भोजपुरी क्षेत्र में बुझनी-बुझउवल आम बइठकी में मनोरंजन, बड़ बुजुर्ग लोग लरिकन के परीच्छा लेवे, केहू के आम चुनौती देवे से ले के कोहबर में दुलहा के संघे बतरस करे तक ले मिले ला।[4]

अंग्रेजी भाषा में इन्हना के रिडल कहल जाला आ ओहिजो इनहन के दू गो किसिम होला एनिग्मा जे रूपक (मेटाफर) चाहे अन्योक्ति-वक्रोक्ति के रूप में कहल जाली आ कॉनन्ड्रा जिनहन में खुद कौनों दुअर्थी शब्द (श्लेष) होला या फिर जिनहन के जबाब में दुअर्थी मतलब भा शब्द आवे ला। हिंदी में इनहन के पहेली कहल जाला जे संस्कृत के प्रहेलिका से आइल हवे। हिंदी-उर्दू के पुरान रूप, हिंदुई, में कहल अमीर खुसरो के पहेली सभ परसिद्ध हईं।

संदर्भ[संपादन करीं]

  1. Archer Taylor, English Riddles from Oral Tradition (Berkeley: University of California Press, 1951), p. 3.
  2. Martin Haug, "Vedische Räthselfragen und Räthselsprüche (Uebersetzung und Erklärung von Rigv. 1, 164)", Sitzungsberichte der philosophisch-philologischen und historischen Classe der Köngl. bayerischen Akademie der Wissenschaften zu München (1875), 457–515.
  3. Jan E. M. Houben, "The Ritual Pragmatics of a Vedic Hymn: The 'Riddle Hymn' and the Pravargya Ritual", Journal of the American Oriental Society, 120 (2000), 499–536 (English translation pp. 533–36), doi:10.2307/606614. JSTOR 606614.
  4. Satyadeva Ojhā (2006). भोजपुरी कहावतें: एक सांस्कृतिक अध्ययन. Vaṇī Prakāśana. pp. 101–. ISBN 978-81-8143-562-0.