कजरी: रिवीजन सभ के बीचा में अंतर

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'''कजरी''' एक तरह क [[भोजपुरी लोकगीत]] हउवे जेवना के [[सावन]] की [[महीना]] में बिटिया कुल [[झुलुआ]] खेलत समय गावेलीं। कजरी गा-गा के झुलुआ खेलला के ‘[[कजरी खेलल]]’ कहल जाला । ई [[उत्तर प्रदेश]]<ref name="Rajpal2013">{{cite book|author=Preeti Rajpal|title=Bharatiya Sangeet Samajik Savroop Avm Parivartan|url=https://books.google.com/books?id=D8j4DQAAQBAJ&pg=PA109|date=1 December 2013|publisher=Unistar Books|isbn=978-93-5113-251-6|pages=109–}}</ref> आ [[बिहार]] के एगो प्रमुख लोक गीत ह।
'''कजरी''' एक तरह क [[भोजपुरी लोकगीत]] हवे। [[सावन]] की [[महीना]] के गीत ह जेकरा के बिटिया-मेहरारू कुल झुलुआ खेलत समय गावेलीं। कजरी गा-गा के झुलुआ खेलला के "कजरी खेलल" कहल जाला। ई [[उत्तर प्रदेश]]<ref name="Rajpal2013">{{cite book|author=Preeti Rajpal|title=Bharatiya Sangeet Samajik Savroop Avm Parivartan|url=https://books.google.com/books?id=D8j4DQAAQBAJ&pg=PA109|date=1 December 2013|publisher=Unistar Books|isbn=978-93-5113-251-6|pages=109–}}</ref> आ [[बिहार]] के एगो प्रमुख लोक गीत ह। भोजपुरी के अलावा ई गीत मैथिली आ मगही में भी गावल जाला{{sfn|शांति जैना|1990|p=53}} हालाँकि, कजरी के मुख्य क्षेत्र [[भोजपुरी क्षेत्र}भोजपुरी इलाका]] ह{{sfn|शांति जैना|1990|p=140}} आ एहू में [[बनारस]] आ मिर्जापुर के एकर मुख्य क्षेत्र मानल जाला।


==परिचय==
==परिचय==
भोजपुरी भाषा में अलग-अलग मौसम में गावल जाये वाला तरह-तरह क गीत पावल जालें जेवना में कजरी क आपन एगो अलगे महत्व हवे । कजरी गावे क मौसम [[बरसात]] क होला जब [[सावन]] की [[महीना]] में ए गीतिन के गावल जाला । कजरी के [[गीति]] गावे वाली अधिकतर नयी उमर के लइकी-बिटिया होखेलीं । ए गीतिन के सावन में [[झुलुआ]] खेलत घरी लइकी कुल आपस में दू गोल बना के गावेलीं । कजरी गा-गा के झुलुआ खेलला के ‘[[कजरी खेलल]] कहल जाला । एहीसे कजरी की गीतिन में [[सावन]] की महीना क हरियाली, रिमझिम [[बरखा]] के फुहार क खनक, खेल-खेलवाड़ के चंचलता, किशोरावस्था के उछाह अउरी आपस में छेड़छाड़ वाली बातचीत के सरसता झलकेला ।
[[भोजपुरी क्षेत्र]] में अलग-अलग मौसम में गावल जाये वाला तरह-तरह क गीत पावल जालें जेवना में कजरी क आपन एगो अलगे महत्व हवे । कजरी गावे क मौसम [[बरसात]] क होला जब [[सावन]] की [[महीना]] में ए गीतिन के गावल जाला। कजरी के [[गीति]] गावे वाली अधिकतर नयी उमर के लइकी-बिटिया होखेलीं । ए गीतिन के सावन में [[झुलुआ]] खेलत घरी लइकी कुल आपस में दू गोल बना के गावेलीं। कजरी गा-गा के झुलुआ खेलला के "कजरी खेलल]]" कहल जाला । एहीसे कजरी की गीतिन में [[सावन]] की महीना क हरियाली, रिमझिम [[बरखा]] के फुहार क खनक, खेल-खेलवाड़ के चंचलता, किशोरावस्था के उछाह अउरी आपस में छेड़छाड़ वाली बातचीत के सरसता झलकेला।


== बिसय ==
==कजरी की गीतिन के विषय ==
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सावन की मौसम आ गावे वालिन के उमर के हिसाब से कजरी की गीतिन में अधिकतर चंचलता आ प्रेम भरल विषय मिलेला । ननद-भउजाई क छेड़छाड़, सासु-पतोहि क नोकझोंक, राधा-कृष्ण क प्रेम, श्रीरामचंद्र जी की जीवन क घटना, अउरी नई बहुरिया क अपने पति की साथै प्रेम भरल बातचीत कजरी क सबसे चलनसार विषय हवें । कजरी गावे वालिन में बहुत लइकी अइसनो होखेलीं जवन बियाह-गौना की बाद पहिला सावन में अपनी नइहर आइल रहेलिन जेकरा वजह से वियोग रस से भरल कजरी क गीति भी मिलेलीं । एकरी अलावा जीवन के हर बात से जुडल कजरी क गीति छिटपुट पावल जालीं । भारत की स्वतंत्रता आंदोलन की समय देशभक्ती वाली कजरी बहुत गावल जांय जिनहन के ‘सुराजी कजरी’ कहले जाला ।
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==उदहारण==

इहाँ कजरी क एगो उदहारण दिहल जात बा जवना में ननद-भउजाई क संवाद बा :
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“कइसे खेले जाइबि सावन में कजरिया<br />
बदरिया घेरि आइल ननदी ।।
बदरिया घेरि आइल ननदी ।।
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केतने जना खइहें गोली, केतने जइहें फँसिया डोरी;<br />
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सावन की मौसम आ गावे वालिन के उमिर के हिसाब से कजरी की गीतिन में अधिकतर चंचलता आ प्रेम भरल विषय मिलेला। ननद-भउजाई क छेड़छाड़, सासु-पतोहि क नोकझोंक, राधा-कृष्ण क प्रेम, श्रीरामचंद्र के जीवन क घटना, अउरी नई बहुरिया क अपने पति की साथै प्रेम भरल बातचीत कजरी क सबसे चलनसार विषय हवें। कजरी गावे वालिन में बहुत लइकी अइसनो होखेलीं जवन बियाह-गौना की बाद पहिला सावन में अपनी नइहर आइल रहेलिन जेकरा वजह से वियोग रस से भरल कजरी क गीति भी मिलेलीं। एकरी अलावा जीवन के हर बात से जुडल कजरी क गीति छिटपुट पावल जालीं । भारत की आजादी के लड़ाई के समय देशभक्ती वाली कजरी बहुत गावल जाँय जिनहन के "सुराजी कजरी" कहले जाला।


इहाँ कजरी क एगो उदहारण दिहल जात (साइड में कोटेशन देखीं) बा जवना में ननद-भउजाई क संवाद बा:
==कजरी गायक/गायिका==

"पहिले भउजाई ननद से कहत बाड़ी कि ए ननद ! इ त बादर घेरि आइल बा, हम एईसना में सावन में कजरी खेले कइसे जाइबि? ननद कहत बाड़ी – ए भउजी तू त अकेलही कजरी खेले जात बाडू आ तोहरी संघे केहू सहेलियो नइखे। रास्ता में तोहके गुंडा रोकि लिहें तब! ए पर भउजाई जवाब देत बाड़ी – कि अगर एइसन होई त केतने लोग गोली खाई, केतने फाँसी पर चढ़ी आ केतने लोगन के जेल में चक्की पीसे के पड़ी।"

==तिहुआर==
गीत के बिधा के अलावा '''कजरी''' नाँव के तिहुआर भी मनावल जाला।

==कलाकार==
* [[शारदा सिन्हा]]
* [[शारदा सिन्हा]]


==फुटनोट==
==संदर्भ==
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==स्रोत संदर्भ==
* {{cite book|ref=harv|author=शांति जैना|title=कजरी|url=https://books.google.com/books?id=RcRjAAAAMAAJ|year=1990|publisher=उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी}}


[[श्रेणी:भोजपुरी लोकगीत]]
[[श्रेणी:भोजपुरी लोकगीत]]

10:27, 12 जुलाई 2017 तक ले भइल बदलाव

कजरी एक तरह क भोजपुरी लोकगीत हवे। ई सावन की महीना के गीत ह जेकरा के बिटिया-मेहरारू कुल झुलुआ खेलत समय गावेलीं। कजरी गा-गा के झुलुआ खेलला के "कजरी खेलल" कहल जाला। ई उत्तर प्रदेश[1]बिहार के एगो प्रमुख लोक गीत ह। भोजपुरी के अलावा ई गीत मैथिली आ मगही में भी गावल जाला[2] हालाँकि, कजरी के मुख्य क्षेत्र [[भोजपुरी क्षेत्र}भोजपुरी इलाका]] ह[3] आ एहू में बनारस आ मिर्जापुर के एकर मुख्य क्षेत्र मानल जाला।

परिचय

भोजपुरी क्षेत्र में अलग-अलग मौसम में गावल जाये वाला तरह-तरह क गीत पावल जालें जेवना में कजरी क आपन एगो अलगे महत्व हवे । कजरी गावे क मौसम बरसात क होला जब सावन की महीना में ए गीतिन के गावल जाला। कजरी के गीति गावे वाली अधिकतर नयी उमर के लइकी-बिटिया होखेलीं । ए गीतिन के सावन में झुलुआ खेलत घरी लइकी कुल आपस में दू गोल बना के गावेलीं। कजरी गा-गा के झुलुआ खेलला के "कजरी खेलल]]" कहल जाला । एहीसे कजरी की गीतिन में सावन की महीना क हरियाली, रिमझिम बरखा के फुहार क खनक, खेल-खेलवाड़ के चंचलता, किशोरावस्था के उछाह अउरी आपस में छेड़छाड़ वाली बातचीत के सरसता झलकेला।

बिसय

कइसे खेले जाइबि सावन में कजरिया
बदरिया घेरि आइल ननदी ।।
तू त चललू अकेली, केहू सँगे ना सहेली;
गुंडा घेरि लीहें तोहरी डगरिया ।।
बदरिया घेरि आइल ननदी ।।
केतने जना खइहें गोली, केतने जइहें फँसिया डोरी;
केतने जना पीसिहें जेहल में चकरिया ।।
बदरिया घेरि आइल ननदी ।।

--परंपरागत

सावन की मौसम आ गावे वालिन के उमिर के हिसाब से कजरी की गीतिन में अधिकतर चंचलता आ प्रेम भरल विषय मिलेला। ननद-भउजाई क छेड़छाड़, सासु-पतोहि क नोकझोंक, राधा-कृष्ण क प्रेम, श्रीरामचंद्र के जीवन क घटना, अउरी नई बहुरिया क अपने पति की साथै प्रेम भरल बातचीत कजरी क सबसे चलनसार विषय हवें। कजरी गावे वालिन में बहुत लइकी अइसनो होखेलीं जवन बियाह-गौना की बाद पहिला सावन में अपनी नइहर आइल रहेलिन जेकरा वजह से वियोग रस से भरल कजरी क गीति भी मिलेलीं। एकरी अलावा जीवन के हर बात से जुडल कजरी क गीति छिटपुट पावल जालीं । भारत की आजादी के लड़ाई के समय देशभक्ती वाली कजरी बहुत गावल जाँय जिनहन के "सुराजी कजरी" कहले जाला।

इहाँ कजरी क एगो उदहारण दिहल जात (साइड में कोटेशन देखीं) बा जवना में ननद-भउजाई क संवाद बा:

"पहिले भउजाई ननद से कहत बाड़ी कि ए ननद ! इ त बादर घेरि आइल बा, हम एईसना में सावन में कजरी खेले कइसे जाइबि? ननद कहत बाड़ी – ए भउजी तू त अकेलही कजरी खेले जात बाडू आ तोहरी संघे केहू सहेलियो नइखे। रास्ता में तोहके गुंडा रोकि लिहें तब! ए पर भउजाई जवाब देत बाड़ी – कि अगर एइसन होई त केतने लोग गोली खाई, केतने फाँसी पर चढ़ी आ केतने लोगन के जेल में चक्की पीसे के पड़ी।"

तिहुआर

गीत के बिधा के अलावा कजरी नाँव के तिहुआर भी मनावल जाला।

कलाकार

फुटनोट

  1. Preeti Rajpal (1 December 2013). Bharatiya Sangeet Samajik Savroop Avm Parivartan. Unistar Books. pp. 109–. ISBN 978-93-5113-251-6.
  2. शांति जैना 1990, p. 53.
  3. शांति जैना 1990, p. 140.

स्रोत संदर्भ

  • शांति जैना (1990). कजरी. उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी. {{cite book}}: Invalid |ref=harv (help)