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वेदांग ज्योतिष

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वेदांग ज्योतिष (Vedāṅga Jyotiṣa), जेकरा के ज्योतिषवेदांग (Jyotiṣavedāṅga) के दुसरका नाँव से जानल जाला, भारत में ज्योतिष विद्या पर रचल गइल सबले पुरान ग्रंथन में से एक हवे। आज एह ग्रंथ क जवन रूप उपलब्ध बाटें, उनहन के करीबन ईसा पूर्व आखिरी सदी सभ में तैयार भइल मानल जाला, बाकी ई परंपरा लगभग 700-600 ईसा पूर्व से आ रहल रहे।

ई ग्रंथ भारतीय ज्योतिष के आधारभूत ग्रंथ हवे, आ ज्योतिष के वेदांग के छह शाखन में गिनल जाला। परंपरा अनुसार, एह ग्रंथ के रचयिता के नाम लगध मुनि के मानल जाला।

ग्रंथ के इतिहास

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वेदांग ज्योतिष के तिथि निर्धारण क महत्व एह खातिर बाटे काहें से की एकरा से खुद वेदकाल के ग्रंथन के समय जाने में मदद मिले ला। एह ग्रंथ में लगभग 1400 ईसा पूर्व के शीत अयनांत (winter solstice) के वर्णन मिलेला। एह वर्णन के आधार पर विद्वान लोग वेदांग ज्योतिष के तिथि क पता लगावे के कोसिस कइले बाटे। ए ग्रंथ के दू गो पाठ प्रचलित बाड़ें – ऋग्वेद शाखा आ यजुर्वेद शाखा। दुनु शाखा में एके जइसन श्लोक बाड़ें, बस यजुर्वेद शाखा में आठ गो श्लोक बेसी मिलेलें।

टी. के. एस. शास्त्री आ आर. कोच्चर के मते, ई ग्रंथ ओही दौर में लिखाइल जेकर वर्णन एह ग्रंथ में खुद मिलेला; एह हिसाब से अइसन अनुमान लगावल जाला की ई 1370 से 1150 ईसा पूर्व के बीच लिखल गइल होखी। डेविड पिंग्री एह वर्णित अयनांत के 1180 ईसा पूर्व के बतवले, बाकिर ऊ कहेलन कि एह गणना के आधार पर ग्रंथ के सटीक रचना तिथि निश्चय ना कइल जा सकेला। बहुत विद्वान लोग 1400-1200 ईसा पूर्व के अनुमान मानेला, जबकि सुब्बारायप्पा कहेलन कि आज जे ग्रंथ बा ऊ शायद एह रूप में 700-600 ईसा पूर्व में बनल होखी। अइसन तर्क के वजह ई बा की भाषा शैली आ रचना क ढंग बाद के महाकाव्यकाल के जइसन बा आ बाबिलोनी ग्रंथन से मिलत-जुलत तत्व एह में मिलेलें। माइकल विट्ज़ल आ संतानु चक्रवर्ती एकरा के ईसा पूर्व के अंतिम सदी सभ के दौर के रचल मानेलन।

कैलेंडर

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वेदांग ज्योतिष में बतावल कैलेंडर, सूर्य आ चंद्रमा के औसत गति पर आधारित बा, हालाँकि, इनहन के सटीक गति के वर्णन एह ग्रंथ में ना मिलेला। ई कैलेंडर 5 बरिस के चक्र के आधार बनावे ला जेकरा के 'युग' के नाँव से जानल जाला। युग के सुरुआत माघ मास के पहिला दिन होखे ला, जब सूरज आ चांद धनिष्ठा नक्षत्र (बीटा डेल्फिनी) में होखे लें आ ठीक एही समय शीत अयनांत (जेकरा आज्काल्ह मकर संक्रांति भा खिचड़ी के रूप में मनावल जाला) के दिन अमौसा के तिथियो पड़े ले। जब इ कलेंडर लागू भइल होखी तब ई गणना एकदम सटीक रहल होखी - मौनी अमौसा आ खिचड़ी दुनों युग के पहिला दिने एक्के साथे पड़त रहल होखिहें।

एक युग में 62 महीना होखेलें, जिनहना में 2 गो अधिक मास होखे लें – तिसरका आ पाँचवें बरिस में क्रम से सावन के अंत में आ साल के अंत में (पूस भा माघ में) अधिका महीना जोड़ल जालें।

तिथि के परिभाषा चंद्र-मास के 1/30 हिस्सा के रूप में कइल गइल बाटे। हर दिन के एगो तिथि असाइन कइल जाला; अब अगर पूरा युग में कुल दिन (24 घंटा इ दिन-आ रात) के गिनती के तुलना में कुल तिथी सभ के गिनती से बेसी होखेला, हर 61 दिन पर एगो तिथि छोड़ल जाला (एही के क्षय तिथि कहल जाला)।

हर दिन के चांद के नक्षत्रो (जहिया चाँद जवना नक्षत्र के सोझा होखे) से जोड़ल जाला। नक्षत्रवनों के अवधि एक पूरा दिन से छोट होखला से हर 3,279 दिन पर एगो फाजिल नक्षत्र जोड़ल जाला। साल के महीना सभ के नांव: माघ, फागुन, चैत, बैसाख, जेठ, आषाढ़, (जरूरत पर सावन अधिक), सावन, भादों, असिन, कार्तिक, अगहन, पूस, (जरूरत पर पूस या माघ अधिक)। ई कैलेंडर अमांत पद्धति पऽ चलेला – महीना अमावस्या (अमौसा) पर खतम होखेला आ शुक्ल पक्ष (अँजोर) के प्रतिपदा (एक्कम तिथि) के शुरू होखेला।

प्रमुख संस्करण

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  • यजुस शाखा आ ऋक भेद वाला संस्करण पर सोमाकर शेषनाग के टिप्पणी – सम्पादक: अल्ब्रेख्ट वेबर (Berlin, 1862)
  • यजुस शाखा आ ऋक शाखा के गैर-यजुस श्लोक – सम्पादक: जी. थिबौट, Journal of the Asiatic Society Bengal, 1877
  • हिंदी अनुवाद: गिरिजा शंकर शास्त्री, ज्योतिष कर्मकाण्ड और अध्यात्म शोध संस्थान, दारागंज, इलाहाबाद।
  • संस्कृत व्याख्या आ हिंदी अनुवाद सहित: वेदांगज्योतिषम्: यजुर्वेदिनां परंपरायागतं – लगध, आचार्य शिवराज कौण्डिन्यायन आदि द्वारा सम्पादित।

ई ग्रंथ वेदकालीन समय के ज्योतिष आ पंचांग पर गहिर झाँकी देला आ भारतीय खगोलशास्त्र के प्राचीन विकास के झलक देला।