सतुआन: रिवीजन सभ के बीचा में अंतर

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'''सतुआन''' भोजपुरी संस्कृति के काल बोधक पर्व ह। [[हिन्दू पतरा]] में सौर मास के हिसाब से सुरूज जहिआ भूमध्य रेखा (बिसुवत रेखा) से उत्तर के ओर जाले तहिये ई पर्व मनावल जाला। एहि दिन से खरमास के भी समाप्ति मान लिहल जाला।
'''सतुआन''' भोजपुरी संस्कृति के काल बोधक पर्व ह। [[हिन्दू पतरा]] में सौर मास के हिसाब से सुरूज जहिआ भूमध्य रेखा (बिसुवत रेखा) से उत्तर के ओर जाले तहिये ई पर्व मनावल जाला। एहि दिन से खरमास के भी समाप्ति मान लिहल जाला।


सतुआन के बहुत तरह से बनावल जाला, सामान्य रूप से आज के दिन [[सतुआ|जौ के सत्तू]] गरीब असहाय के दान करे के प्रचलन बा। आज के दिन लोग स्नान पावन नदी गंगा में करे ला, पूजा आदि के बाद जौ के सत्तू, गुर, कच्चा आम के टिकोरा आदि गरीब असहाय के दान कइल जाला आ ईस्ट देवता, ब्रह्मबाबा आदि के चढ़ा के प्रसाद के रूप में ग्रहण कइल जाला ई काल बोधक पर्व संस्कृति के सचेतना, मानव जीवन के उल्लास आ सामाजिक प्रेम प्रदान करेला।
सतुआन के बहुत तरह से मनावल जाला, सामान्य रूप से आज के दिन [[सतुआ|जौ के सत्तू]] गरीब असहाय के दान करे के प्रचलन बा। आज के दिन लोग स्नान पावन नदी गंगा में करे ला, पूजा आदि के बाद जौ के सत्तू, गुर, कच्चा आम के टिकोरा आदि गरीब असहाय के दान कइल जाला आ ईस्ट देवता, ब्रह्मबाबा आदि के चढ़ा के प्रसाद के रूप में ग्रहण कइल जाला ई काल बोधक पर्व संस्कृति के सचेतना, मानव जीवन के उल्लास आ सामाजिक प्रेम प्रदान करेला।

आस्था और विश्वास का महापर्व मेष संक्रान्ति (सतुआन)


दो मिनट में मैगी खाने वाली पीढ़ी को यह जानकर आश्चर्य होगा, कि सतुआ गूँथने में मिनटों नहीं लगता है। और ना ही आग पर पकाने की जरूरत और ना ही बर्तन की आवश्यकता है। सात भुने अनाज के आटे से बने सतुआ को घोल कर पी भी सकते है, और इसे गुंथ कर खा भी सकते है, इसे गमछा बिछा कर पानी डाल कर और थोड़ा सा नमक मिला कर तैयार किया जा सकता है।
दो मिनट में मैगी खाने वाली पीढ़ी को यह जानकर आश्चर्य होगा, कि सतुआ गूँथने में मिनटों नहीं लगता है। और ना ही आग पर पकाने की जरूरत और ना ही बर्तन की आवश्यकता है। सात भुने अनाज के आटे से बने सतुआ को घोल कर पी भी सकते है, और इसे गुंथ कर खा भी सकते है, इसे गमछा बिछा कर पानी डाल कर और थोड़ा सा नमक मिला कर तैयार किया जा सकता है।

03:55, 14 अप्रैल 2020 तक ले भइल बदलाव

सतुआन भोजपुरी संस्कृति के काल बोधक पर्व ह। हिन्दू पतरा में सौर मास के हिसाब से सुरूज जहिआ भूमध्य रेखा (बिसुवत रेखा) से उत्तर के ओर जाले तहिये ई पर्व मनावल जाला। एहि दिन से खरमास के भी समाप्ति मान लिहल जाला।

सतुआन के बहुत तरह से मनावल जाला, सामान्य रूप से आज के दिन जौ के सत्तू गरीब असहाय के दान करे के प्रचलन बा। आज के दिन लोग स्नान पावन नदी गंगा में करे ला, पूजा आदि के बाद जौ के सत्तू, गुर, कच्चा आम के टिकोरा आदि गरीब असहाय के दान कइल जाला आ ईस्ट देवता, ब्रह्मबाबा आदि के चढ़ा के प्रसाद के रूप में ग्रहण कइल जाला ई काल बोधक पर्व संस्कृति के सचेतना, मानव जीवन के उल्लास आ सामाजिक प्रेम प्रदान करेला।

दो मिनट में मैगी खाने वाली पीढ़ी को यह जानकर आश्चर्य होगा, कि सतुआ गूँथने में मिनटों नहीं लगता है। और ना ही आग पर पकाने की जरूरत और ना ही बर्तन की आवश्यकता है। सात भुने अनाज के आटे से बने सतुआ को घोल कर पी भी सकते है, और इसे गुंथ कर खा भी सकते है, इसे गमछा बिछा कर पानी डाल कर और थोड़ा सा नमक मिला कर तैयार किया जा सकता है।

सतुआन से माह भर से रुके मंगल कार्य प्रारंभ हो जाते हैं। हिंदू धर्मावलंबियों के लिए संक्रांति का काफी महत्व है। इस दिन को खरमास समाप्ति और मंगल कार्य की शुरुआत का दिन तो मानते ही हैं, पवित्र नदियों में स्नान एवं दान-पुण्य का भी इसे बड़ा पर्व माना जाता है। सतुआ के सेवन की परंपरा भी यहां सदियों से कायम है। सूर्य के मेष राशि में प्रवेश के साथ संक्रांति का पर्व शुरू हो जाता है। पूरे दिन नदियों में स्नान एवं दान-पुण्य किया जाता है। बताते चलें कि प्रति वर्ष चैत्र में खरमास लगता है। और इसकी समाप्ति के दिन यानी सूर्य के मेष संक्रांति में प्रवेश के दिन सतुआ संक्रांति का पर्व मनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं को मानने वाले लोग आम के फल (टिकोरा) सेवन की भी शुरुआत इसी दिन करते हैं। प्रतिवर्ष सूर्य जब मीन राशि छोड़कर मेष राशि में प्रवेश करते हैं। तब इसके उपलक्ष्य में यह त्योहार मनाया जाता है। ये भी मान्यता है की जब सूर्य मीन राशि को त्याग कर मेष राशि में प्रवेश करते है। तो उसके पुण्यकाल में सूर्य और चंद्र की रश्मियों से अमृतधारा की वर्षा होती है, जो आरोग्य वर्धक होता है। इसलिए इस दिन लोग बासी खाना भी खाते हैं। सतुआनी में दाल से बनी सत्तू खाने की परंपरा है। यह पर्व कई मायने में महत्वपूर्ण है। इस दिन लोग गंगा स्नान कर मिट्टी या पीतल के घड़े में आम का पल्लो स्थापित करते हैं। सत्तू, गुड़ और चीनी आदि से पूजा की जाती है। इस दौरान सोना और चाँदी आदि दान देने की भी परंपरा है। पूजा के उपरांत लोग सत्तू व आम को प्रसाद के रूप में ग्रहण करते है।

इसके एक दिन बाद जूड़ शीतल का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन पेड़ में बासी जल डालने की भी परंपरा है। जुड़ शीतल का त्योहार बिहार में हर्षोलास के साथ मनाया जाता है। पर्व के एक दिन पूर्व मिट्टी के घड़े या शंख जल को ढंककर रखा जाता है, फिर जुड़ शीतल के दिन सुबह उठकर पूरे घर में जल का छींटा देते हैं। मान्यता है की बासी जल के छींटे से पूरा घर और आंगन शुद्ध हो जाता है।