मीर तक़ी मीर

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मीर मुहम्मद तक़ी
1786 में मीर
1786 में मीर
जनमफरवरी 1723
आगरा (अकबराबाद), मुगल भारत
निधन21 सितंबर 1810 (उमिर 87)
लखनऊ, अवध राज, मुगल भारत
लेखन उपनाँवमीर
पेशाउर्दू शायर
समय18वीं सदी के मुगल भारत
बिधाग़ज़ल, मसनवी, फ़ारसी शायरी
बिसयप्रेम, दर्शन
प्रमुख रचनाफैज़-ए-मीर
ज़िक्र-ए-मीर
नुक्ता-उस-शुअरा
कुल्लियात-ए-फ़ारसी
कुल्लियात-ए-मीर

मीर मुहम्मद तक़ी मीर (फरवरी 1723 — 21 सितंबर 1810) मुगल जमाना के एगो शायर रहलें। उर्दू शायरी में इनकर अस्थान बहुत ऊँच मानल जाला आ इनके ख़ुदा-ए-सुख़न के उपाधि दिहल जाला[1] जेकर मतलब हवे शायरी के भगवान। मीर के समय अठारहवीं सदी के मुगल भारत रहे। एह दौर में उर्दू भाषा आ शायरी के सुरुआती दौर रहे आ मीर के खुद के योगदान एह भाषा के साजे-सँवारे में काफी रहल। मीर दिल्ली घराना के सभसे प्रमुख शायर रहलें जिनके उर्दू के सभसे परसिद्ध कवी गालिबो, जे इनके बाद भइलें, महान स्वीकार कइलें। मीर के समय में दिल्ली पर अहमद शाह अब्दाली के हमला भइल रा दिल्ली तबाह हो गइल। एही के बाद अपना जीवन के अंतिम दौर में मीर लखनऊ चल गइलें आ उहाँ नब्बाब आसफुद्दौला के दरबार में रहलें।

कुछ परसिद्ध शेर[संपादन करीं]

हस्ती अपनी हबाब की सी है
ये नुमाइश सराब की सी है

हमनी के जिनगी पानी के बुलबुला नियर बा
सगरी दुनिया के देखावा मृग-मरीचिका नियर बाटे

संदर्भ[संपादन करीं]

स्रोत ग्रंथ[संपादन करीं]

  • ज़ाफ़री, अली सरदार (2009). दीवान-ए-मीर (हिंदी में). राजकमल प्रकाशन. ISBN 978-81-267-1777-4.