मीराबाई
संत मीराबाई | |
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Personal life | |
Born | जशोदा राव रतन सिंह राठौड़ Not recognized as a date. Years must have 4 digits (use leading zeros for years < 1000).[1] कुड़की, मेवाड़ राजघराना (आजकाल्ह के राजस्थान के हिस्सा) |
Died | ल. 1546 | (उमिर 47–48)
Spouse | भोज राजा सिसोदिया (बि. 1516; निधन 1521) |
Parent |
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Known for | कविता, कृष्ण भक्ति काव्य |
Other names |
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Religious life | |
Religion | हिंदू धर्म |
मीरा चाहे मीराबाई[2] (हिज्जे कई बेर मीराँ[3] लिखल जाला), जिनका के संत मीराबाई के रूप में सम्मान दिहल जाला, 16वीं सदी के एगो हिंदू रहस्यवादी कवी आ कृष्ण के भक्त रहली।[4][5][6] इनका के भक्त संत के रूप में मान्यता दिहल जाला, बिसेस रूप से उत्तर भारत के हिंदू परंपरा में। इनिकर जिकिर भक्तमाल में मिले ला जेकर माने ई भइल की भक्ति आंदोलन के दौरान 1600 के आसपास के समय ले ई ब्यापक रूप से जानल-मानल आ सम्मानित भक्त कवि रहली।[7][8] इनकर कबिता सभ में कृष्ण के खातिर माधुर्य भाव देखे के मिले ला।
जादातर किस्सा-कहानी सभ में ई जिकिर मिले ला की मीराबाई निडरता से सामाजिक अउर पारिवारिक नियम-कायदा के अनदेखी करे के साहस कइली, कृष्ण भक्ति में उनकर अपार समर्पण रहे, अउर भक्ति के कारण ससुराल वाला लोग उनुकर उत्पीड़न कइल। कहल जाला कि उनकर ससुराल वाले कबहुओ उनकर संगीत के खातिर प्रेम के पसंद ना कइलस, काहे कि ऊ भक्ति भाव से संगीत के माध्यम से अपन भावना प्रकट करस, जेकरा के ऊ लोग ऊँच जाति के अपमान मानत रहलें। कहल जाला कि उनका ससुराल में बस उनकर पति ही उनका भक्ति में समर्थन कइले रहलें, जबकि कुछ लोग मानेलन कि ऊहो विरोधे में रहलें।
मीराबाई के जीवन से जुड़ल बहुत गो लोककथा आ भक्तिपरक किंवदंती मिलेली, जे आपस में एक-दूसरा से मेल ना खालीं चाहे बहुते अलग-अलग रूप में बिबरन देवे लीं। एगो कथा के अनुसार, जब उनका ससुराल वाले उनका जहर देके मार देवे के कोशिश कइले, तब मीराबाई कृष्ण के मूर्ति पर एगो धागा बाँध के भगवान कृष्ण पर अपन विश्वास जतवली, अउर कृष्ण के दिव्य कृपा से ऊ बच गइली। ई कथा के कइ बेर राखी के परंपरा से जोरल जाला, कि भगवान के मूर्ति पर राखी बाँधल जाए के परंपरा इहे से शुरू भइल।
कृष्ण के प्रति प्रेम आ भक्ति से भरल लाखन गो गीत आ भजन मीराबाई के रचल बतावल जाला, लेकिन विद्वान लोग मानेला कि बस कुछ सौ भजन ही असल में खुद मीराबाई के लिखल हो सके लें। लिखित रूप में, 18वीं सदी से पहिले बस दुई ठे भजनन के जिकिर मिलेला। कई भजन बाद में मीराबाई के भक्त लोग लिखल हो सके लें। ई भजन भारत भर में बहुत प्रसिद्ध बाड़ें।
कुछ मंदिर, जइसे चित्तौड़ किला, मीराबाई के याद में बनल बा। मीराबाई के जीवन पर कई ठे कहानी मिलेलीं, जिनहन के सचाई पर लोगन के अलग-अलग राय बा। एह कहानिन पर कई ठे फिलिम, कॉमिक अउर किताबन के रचना भइल बा।
टीका टिप्पणी आ संदर्भ
[संपादन करीं]- ↑ उषा नील्सन (1997), मीरा बाई, साहित्य अकादमी, ISBN 978-8126004119, पृप. 1-15
- ↑ "Mira Bai". Encyclopædia Britannica. Archived from the original on 4 December 2018. Retrieved 30 जुलाई 2015.
- ↑ शेखावत 2017, p. 15.
- ↑ Karen Pechelis (2004), The Graceful Guru, Oxford University Press, ISBN 978-0195145373, pages 21-23, 29-30
- ↑ Neeti Sadarangani (2004), Bhakti Poetry in Medieval India: Its Inception, Cultural Encounter and Impact, Sarup & Sons, ISBN 978-8176254366, pages 76-80
- ↑ Ryan, James D.; Jones, Constance (2006). Encyclopedia of Hinduism. Infobase Publishing. p. 290. ISBN 9780816075645.
- ↑ Catherine Asher and Cynthia Talbot (2006), India before Europe, Cambridge University Press, ISBN 978-0521809047, page 109
- ↑ Annals And Antiquities of Rajasthan Vol. 1 Page no. 75
स्रोत ग्रंथ
[संपादन करीं]- शेखावत, कल्याणसिंह (2017). मीराँबाई ग्रंथावली. मीराँबाई ग्रंथावली (Hindi में). Vāṇī Prakāśana. ISBN 978-81-7055-762-3. Retrieved 2025-03-02.
बाहरी कड़ी
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विकिमीडिया कॉमंस पर संबंधित मीडिया Meera (Mirabai) पर मौजूद बा। |
- Mīrābāī and Her Contributions to the Bhakti Movement, S. M. Pandey and Norman Zide (1965), History of Religions, Vol. 5, No. 1, pages 54–73
- Without Kṛṣṇa There Is No Song, David Kinsley (1972), History of Religions, Vol. 12, No. 2, pages 149–180
- Mirabai in Rajasthan, Parita Mukta (1989)
- Sangari, Kumkum (14 July 1990). "Mirabai and the Spiritual Economy of Bhakti". Economic and Political Weekly. 25 (28): 1537–52. JSTOR 4396502. Retrieved 15 April 2021.
- Feminist and Non-Western Perspectives in the Music Theory Classroom: A Study of John Harbison's "Mirabai Songs, Amy Carr-Richardson (2002), College Music Symposium, Vol. 42, pages 20–36
- "By the Sweetness of the Tongue": Duty, Destiny, and Devotion in the Oral Life Narratives of Female Sādhus in Rajasthan, Antoinette E. DeNapoli (2009), Asian Ethnology, Vol. 68, No. 1, pages 81–109