मिथिला क्षेत्र के इतिहास

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मिथिला (जेकरा के मिथिलांचल, तिरहुततिरभुक्ति भी कहल जाला ) भारतीय उपमहाद्वीप में स्थित एगो भौगोलिक आ सांस्कृतिक क्षेत्र ह। एह में भारत के बिहार के कुछ हिस्सा आ नेपाल के पूरबी तराई के एकरे सटल जिला सभ के सामिल कइल जालें।[1][2] एह क्षेत्र की मूल भाषा के मैथिली के नाँव से जानल जाला आ एकरा भाषी लोग के मैथिल कहल जाला। मिथिला क्षेत्र के अधिकतर हिस्सा आधुनिक भारत के भीतर आवेला, खास तौर प बिहार राज्य में मिथिला के उत्तर में हिमालय, आ दक्खिन, पच्छिम आ पूरब में क्रम से गंडक, गंडकीमहानंदा नदी बाड़ी स। ई नेपाल के दक्खिनपुरबी तराई में बिस्तार लिहले बाटे।[3][2] एह क्षेत्र के तिरभुक्ति भी कहल जात रहे, जवन तिरहुत के प्राचीन नाम रहल।[4]

प्राचीन इतिहास[संपादन करीं]

मिथिला नाम राजा मिथि से बनल मानल जाला। ऊ मिथिलापुरी के स्थापना कइलें।[5] चूँकि ऊ अपना पिता के देह से पैदा भइल रहलें एहसे उनुका के जनक कहल गइल।

एकरा बाद मिथिला के बाद के राजा लोग जनक उपाधि अपना लिहल। सबसे मशहूर जनक सीता के पिता सीरध्वज जनक रहलन। जनक के वंश में 52 गो राजा रहल लोग।[6]

एह क्षेत्र के पुराना समय में विदेह के नाम से भी जानल जाय। यजुर्वेद संहिता में पहिला बेर विदेह राज्य के जिकिर मिले ला। मिथिला के उल्लेख, बौद्ध जातक, ब्राह्मण, पुराण ( बृहद्विष्णु पुराण में विस्तार से वर्णन) आ रामायणमहाभारत जइसन विभिन्न महाकाव्यन में बा।

बाकिर शतपथ ब्राह्मण के अनुसार, वैदिक काल में विदेह मथव नाम के सरस्वती घाटी से मिथिला में पलायन क के विदेह राज्य के स्थापना कइलन।[7] एह से भरम पैदा हो जाला कि विदेह राज्य के स्थापना वैदिक काल में भइल रहे कि ना, काहें से कि विदेह के एगो जनक राजा राम के ससुर भी रहलेंं, जे बहुत पहिले शासन कइले रहलेंं। इनहन लोगन के पलायन के समय के यथार्थवादी आकलन करे खातिर पुरातात्विक साक्ष्य के कमी बा।

महाभारत आ जातक में राजा लोग के एगो लिस्ट के जिकिर मिले ला। सब राजा या त विदेह या जनक के उपाधि अपना लिहलें।[5]

वैदिक काल, विदेह राज[संपादन करीं]

वैदिक काल में मिथिला विदेह राज्य के केंद्र रहे।[8] विदेह राज्य के शासक लोग के जनक कहल जात रहे।

600 ईसा पूर्व–ल. 300 ईसा पूर्व, वज्जि महाजनपद[संपादन करीं]

विदेह के पतन के बाद मिथिला वज्जिका लीग के नियंत्रण में आ गइल जवन कुल के संघ रहे जवना में सबसे मशहूर रहे लिच्छवी लोग।[9] राजधानी आधुनिक बिहार के वैशाली शहर में रहे। वज्जी के अधीन मिथिला के अंततः मगध के राजा अजातशत्रु के द्वारा जीतल गइल।

6वीं सदी से 11वीं सदी तक: पाल आ सेन शासन[संपादन करीं]

मिथिला लगभग तीन सदी तक पाल साम्राज्य के सहायक रहे। पाल साम्राज्य के शासक बौद्ध धर्म के अनुयायी रहलेंं आ कुछ ग्रंथन के मोताबिक ई लोग कर्ण कायस्थ लोग रहल। इनहन लोगन के राजधानी वर्तमान में बलिराजगढ़ (बाबूबढ़ी-मधुबनी जिला) कस्बा में स्थित मानल जाला। पाल साम्राज्य के अंतिम राजा मदनपाल रहलें। मदनपाल एगो कमजोर राजा रहलें, काहे कि उ सामंत सेना के सेना से हार गइले, जवना के चलते अंत में सेना राजवंश के स्थापना भइल।

पाल साम्राज्य के संस्थापक गोपाल रहलें। ऊ बंगाल के पहिला स्वतंत्र बौद्ध राजा रहलेंं आ 750 में गौड़ में लोकतांत्रिक चुनाव से सत्ता में अइलें, जवन ओह घरी बेजोड़ रहे। 750 से 770 तक राज कइलन आ पूरा बंगाल पर आपन नियंत्रण बढ़ा के आपन स्थिति मजबूत कइलें। इनके उत्तराधिकारी धर्मपाल (r. 770-810) आ देवपाल (r. 810-850) एह साम्राज्य के बिस्तार पूरा उत्तरी आ पूरबी भारतीय उपमहादीप में कइलें। अंत में 12वीं सदी में सेन राजवंश के हमला में पाल साम्राज्य के बिघटन हो गइल।

सेना वंश उनके ताम्रपत्र के अनुसार ब्राह्मक्षत्रिय (क्षत्रिय के रूप में शासन करे वाला ब्राह्मण) के रहे। ई लोग हिन्दू धर्म के कट्टर अनुयायी रहे आ एही से, मिथिला के लोग, खुद हिन्दू धर्म के अनुयायी होखला के नाते, मदनपाल के हरावे में सामंत सेना के मदद कइल। प्रख्यात विद्वान वाचस्पति मिश्र ( मधुबनी जिला के गाँव आंध्र थरही से ) एही काल के रहलें।

11वीं सदी से 14वीं सदी तक : सिमरून/कर्नाट राजवंश[संपादन करीं]

कर्नाट या सिमरून वंश के स्थापना नान्यदेव के द्वारा कइल गइल रहे जवना के राजधानी मिथिला के सिमरांव में रहे।[10][11][12][13][14]

हरिसिंह देव के दरबार में शाही पुजारी वर्ण रत्नाकर के लेखक ज्योतिरीश्वर रहलें। घियासुद्दीन तुगलक के मिथिला ( तिरहुत ) पर आक्रमण पर राजा हरिसिंहदेव कई गो मैथिल लोग के साथे नेपाल भाग के नेपाल में एगो नया राजवंश के स्थापना कइले।[15]

एह राजवंश में छह गो राजा रहलेंं:

  • नान्यदेव (नन्य सिंह देव) के महान योद्धा होखे के अलावा संगीत में भी बहुत रुचि रहे। ऊ राग के वर्गीकरण आ विश्लेषण कइले बाड़न आ राय दिहले बाड़न कि मध्य लय के हस्य (हास्य) आ शृंगार (कामना) रस खातिर चुनल गइल बा, बिलंबित के करुण (करुणा) रस खातिर चुनल गइल बा आ द्रुत् के वीर (बहादुर), रोद्र (क्रोध), अद्भूत ( अद्भुत) आ भयनाक (भयकारी) रस। ऊ संगीत पर एगो ग्रंथ ‘सरस्वती हृदयलंकर’ लिखनें जवन पुणे के भंडारकर शोध संस्थान में सुरक्षित बा।[16] नान्य देव के "मिथिला के भुलाइल राजा" भी मानल जाला।
  • गंगादेव (गंगा सिंह देव)
  • नरसिंहदेव (नर सिंह देव)
  • रामसिंहदेव (रामसिंह देव)
  • शक्तिसिंहदेव (शक्ति सिंह देव)
  • हरिसिंहदेव (हरिसिंह देव) सबसे प्रसिद्ध रहे। मैथिल ब्राह्मण आ मैथिल कायस्थ (कर्ण कायस्थ) में पंजी व्यावस्था भा पंजी प्रबंध के शुरू करे आ लागू करे में उनुकर बहुते योगदान रहल। कला आ साहित्य के भी बड़ा संरक्षक रहलें।

14वीं से 16वीं सदी: ओइनिवार राजवंश[संपादन करीं]

1325 में 1324 में कर्नाट वंश के पतन के बाद नाथ ठाकुर पहिला मैथिल शासक बनलें। इनके बाद पैदा भइल राजवंश के नाँव ओनिवार राजवंश रहल, आ एह में अउरी 20 गो शासक लोग सामिल रहल।

अकबर जब सम्राट बनलें त मिथिला क्षेत्र में सामान्यता ले आवे के कोशिश कईलें। ऊ एह निष्कर्ष पर पहुँचलन कि कवनो मैथिल ब्राह्मण के राजा बनला के बाद ही मिथिला में शांति के अस्थापित हो सकेला आ महसूल के वसूली हो सकेला। 1556 में सम्राट अकबर पं. महेश ठक्कुर के मिथिला के शासक के रूप में। पं. महेश ठक्कुर मूल, खरौरे भौर के रहलें आ एही से ओह राजवंश के ‘खंडवाला कुल’ कहल जात रहे आ राजधानी मधुबनी जिला के राजग्राम में बनावल गइल रहे।

16वीं सदी से 20वीं सदी तक: राज दरभंगा[संपादन करीं]

खंडवाला राजवंश राज दरभंगा के रूप में शासन कइलन, महेश ठाकुर से इनहन लोग के शासन शुरू भइल, जिनके निधन 1558 में भइल। अंतिम शासक कामेश्वर सिंह रहलें, जिनकर शासन 1929 से भारत के आजादी के साथ 1947 में खतम हो गइल, जब सब राज सभ के भारत संघ में विलय हो गइल।

संदर्भ[संपादन करीं]

  1. Ishii, H. (1993). "Seasons, Rituals and Society: the culture and society of Mithila, the Parbate Hindus and the Newars as seen through a comparison of their annual rites". Senri Ethnological Studies 36: 35–84. Archived from the original on 23 August 2017.
  2. 2.0 2.1 Kumar, D. (2000). "Mithila after the Janakas". The Proceedings of the Indian History Congress. 60: 51–59.
  3. Ishii, H. (1993). "Seasons, Rituals and Society: the culture and society of Mithila, the Parbate Hindus and the Newars as seen through a comparison of their annual rites". Senri Ethnological Studies 36: 35–84.
  4. Yadav, Yogendra P. date missing. Reading Asia: New Research in Asian Studies; Frans Hüsken, Dick van der Meij; Chapter 12 – The Maithili Language at page 240
  5. 5.0 5.1 Encyclopaedia of Hinduism. Nagendra Kumar Singh, p. 3239.
  6. Dr. Kamal Kant Jha, Pt. Sri ganeshrai Vidyabhushan, Dr. Dhanakar Thakur. "A Brief History of Mithila State | Bihar Articles" (अंग्रेजी में). Archived from the original on 1 March 2012. Retrieved 10 January 2008.{{cite web}}: CS1 maint: multiple names: authors list (link)
  7. Verma, Harsh (2013), "Leadership and Dharma: The Indian Epics Ramayana and Mahabharata and Their Significance for Leadership Today", Fictional Leaders, Palgrave Macmillan UK: 182–201, doi:10.1057/9781137272751_13, ISBN 978-1-349-44498-4
  8. Michael Witzel (1989), Tracing the Vedic dialects in Dialectes dans les litteratures Indo-Aryennes ed. Caillat, Paris, pages 13, 17 116-124, 141-143
  9. Raychaudhuri, Hemchandra (1972), Political History of Ancient India, University of Calcutta, Calcutta, pp. 106–113, 186–90
  10. Parishad, Bihar Purāvid (1981). "The Journal of the Bihar Purävid Parishad, Volumes 4-5". p. 414. Retrieved 26 January 2017.
  11. Sinha, Chandreshwar Prasad Narayan (1979). "Mithila Under the Karnatas, C. 1097-1325 A.D". p. 55. Retrieved 26 January 2017.
  12. Choudhary, Radhakrishna (1970). "History of Muslim rule in Tirhut, 1206-1765, A.D." p. 28. Retrieved 26 January 2017.
  13. "The Journal of the Bihar Research Society, Volume 46". 1960. pp. 22–25. Retrieved 26 January 2017.
  14. "Publications, Volume 33". 1935. p. 193. Retrieved 26 January 2017.
  15. "Mithila, Maithili and Maithil: the Field in Historical Context" (PDF). ShodhGanga. INFLIBNET. pp. 88–89, 101–102.
  16. http://www.mithilaonline.com/music.html Archived 27 नवंबर 2006 at the Wayback Machine accessed on 25 January 2008