भज गोविंदम्

भज गोविंदम्, जे मोह मुद्गर (अर्थात् 'माया के नाश करे वाला') नाँव से भी जानल जाला, एगो प्रसिद्ध हिंदू भक्तिमय संस्कृत स्त्रोत बा, जवन आदि शंकराचार्य जी रचलें। ई स्तोत्र ए बात पर जोर देला कि जइसे ज्ञान जरूरी बा, ओइसहीं भक्ति (आस्था) भी महत्त्वपूर्ण बा, जवन भक्ति आंदोलन में विशेष रूप से रेखांकित भइल।[1]
कहानी
[संपादन करीं]ए गीत से जुड़ल एगो प्रसिद्ध कथा बा। कहल जाला कि एक दिन आदि शंकराचार्य जी अपना शिष्यन के साथे बनारस के सड़क पर चलल जात रहले, तबे ओहिजा उनकर नजर एगो बुढ़ ऊमर के विद्वान पर पड़ल, जे सड़क पर बार-बार पाणिनि के संस्कृत व्याकरण के नियम रटत रहलें। उनका पर शंकर के दया आइल, त ओह विद्वान के लगे गइलें आ उनकरा समझवले कि ए उमिर में व्याकरण के नियम में समय नष्ट करे के बजाय भगवान के भजन आ आराधना में मन लगावे के चाहीं, काहे कि खाली भर ई भक्ति ए जन्म-मरण के चक्कर से मुक्ति दिला सकेला। कहल जाला कि एही अवसर पर "भज गोविंदम्" के रचना भइल।[2]
संदर्भ
[संपादन करीं]- ↑ Bhaja Govindam, by Sankarācārya, Chinmayananda, Translated by Brahmacharini Sharada. Published by Chinmaya Publications Trust, 1967. Page5-7.
- ↑ The Hymns of Sankaracharya, by Śankaracarya, Telliyavaram Mahadevan Ponnambalam Mahadevan, Totakācārya, Sureśvarācārya. Published by Motilal Banarsidass Publ., 2002. ISBN 81-208-0097-4. Page 33.
बाहरी कड़ी
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